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खेल की दुनिया

‘हेसल’ से निकल रहा है एक और हीरा

क्या आपने झारखंड के हेसल का नाम सुना है ? शायद नहीं। झारखंड के खूंटी ज़िले में पड़ने वाला ये गांव देश के बेहद ग़रीब गांवों में शामिल है। गांव में केवल 70 घर हैं। हमेशा तंगहाली और बदहाली की ज़िंदगी जीने वाले यहां के लोगों में आज एक नई खुशी ने डेरा डाला है। ये खुशी ही है इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की आज की कहानी की नायिका। इस नायिका ने एक बार फ़िर साबित किया है कि कोयले की खान में हीरे ही हीरे हैं बस नज़र पारखी होनी चाहिए।

पुंडी सारू: सपनों के लिए बड़ी लड़ाई

17 साल की पुंडी सारू खूंटी के इसी हेसल गांव की रहने वाली हैं। वो इन दिनों अमेरिका के मिडलबरी कॉलेज में ट्रेनिंग ले रही हैं। वो कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत अमेरिका गई हैं। खूंटी के बेहद पिछड़े गांव हेसल से निकल कर सीधे अमेरिका के मिडलबरी तक की उनकी उड़ान बहुत ही असाधारण है।

बेहद ग़रीब परिवार में जन्मी पुंडी का पूरा बचपन संघर्षों के साथ बीता। पिता मज़दूरी करके घर चलाया करते थे। जो थोड़ी बहुत कमाई होती थी उससे माता-पिता और पांच बच्चों का किसी तरह गुज़ारा होता था। साल 2012 में पिता एक सड़क हादसे का शिकार हो गए। एक हाथ बुरी तरह टूट गया। इलाज के बाद हाथ तो ठीक हो गया लेकिन ऐसा नहीं कि वो फ़िर से मज़दूरी कर सकें। अब घर की कमाई का इकलौता ज़रिया भी ख़त्म हो गया। थोड़ी बहुत ज़मीन पर होने वाली खेती और पालतू पशुओं से घर चल रहा था। फ़िर भाई ने पढ़ाई छोड़ कर काम शुरू कर दिया। परिवार पर दुखों का पहाड़ एक बार और टूटा जब बड़ी बहन ने दसवीं की परीक्षा में फेल होने पर ख़ुदकुशी कर ली थी। इस हादसे ने पुंडी को बुरी तरह तोड़ दिया था लेकिन हर बार पुंडी ने ख़ुद को समेटा, ख़ुद को जोड़ा और आगे बढ़ती गईं।

पुंडी का खेलों से प्यार

ज़्यादातर बच्चों की तरह पुंडी को भी खेलों से प्यार था लेकिन कभी उन्होंने इसे करियर की तरह नहीं देखा था। पहले वो फुटबॉल खेला करती थीं। फ़िर इसी बीच उनका लगाव हॉकी की तरफ़ बढ़ने लगा। उन्हें लगा कि वो हॉकी के ज़रिये अपने घर की माली हालत सुधार सकती हैं। उन्हें पता चला कि इस खेल की मदद से उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकती है। बस फ़िर क्या था। उन्होंने हॉकी को ही अपना लक्ष्य बना लिया।

मडुआ बेच कर ख़रीदी स्टिक

पुंडी ने हॉकी को तो चुन लिया था लेकिन ये खेल उनके लिए इतना आसान भी नहीं था। पुंडी के पास हॉकी स्टिक ख़रीदने तक के पैसे नहीं थे। घर की माली हालत पहले से ही ख़राब थी लेकिन पुंडी तो ठान चुकी थी कि उन्हें हॉकी ही खेलना है। हॉकी स्टिक के लिए 1500 रुपये की ज़रूरत थी। ऐसे में उन्होंने मडुआ बेच कर पैसे जुटाए। कुछ रक़म बची तो अपनी स्कॉलरशिप के पैसे लगा दिये और फ़िर अपनी पहली हॉकी स्टिक ख़रीदी। देखते ही देखते पुंडी का हॉकी का हुनर कमाल दिखाने लगा। इधर घर का संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ था। पिता के साथ ख़ुद पुंडी भी जानवरों को चराने जाया करती थी। पिता अक्सर कहते कि क्यों समय बर्बाद कर रही हो लेकिन पुंडी पर तो हॉकी का जुनून सवार था। पशुओं को चराने के बाद वो समय निकालकर 8 किलोमीटर दूर बिरसा स्टेडियम तक जाती थी और वहां फ़िर जी-तोड़ प्रैक्टिस किया करती थी। जब पहली बार वो ट्रॉफी जीत कर घर लाई तो घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बहन की मौत के बाद पुंडी ने कई महीने हॉकी को हाथ नहीं लगाया था लेकिन फ़िर खेल और हॉकी के प्रति उसके प्यार ने उसके अंदर की निराशा पर जीत हासिल की और पुंडी फ़िर खेल के मैदान में पहुंच गई।

शक्ति वाहिनी का मिला साथ

इसी बीच मानव तस्करी समेत कई मुद्दों पर काम करने वाली सामाजिक संस्था शक्ति वाहिनी के कैंप में पुंडी को जाने का मौक़ा मिला। ये संस्था आदिवासी लड़कियों को अच्छी ट्रेनिंग देकर उनका भविष्य सुधारने के प्रयास में जुटी हुई है। संस्था ने खूंटी, लोहरदगा, गुमला, रांची और सिमडेगा से हॉकी खेलने वाली 100 से ज़्यादा लड़कियों का चयन किया था। इनमें पुंडी भी शामिल थी। इन लड़कियों को रांची के ‘हॉकी कम लीडरशिप कैंप’ में 7 दिन की ट्रेनिंग दी गई। कैंप के बाद 107 में से पुंडी समेत 5 लड़कियों का कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम में चयन किया गया। वैसे तो ये चयन साल 2020 में ही हुआ था लेकिन कोरोना की वजह से ये लड़कियां तब अमेरिका नहीं जा सकी थीं। क़रीब 2 साल के लंबे इंतज़ार के बाद ये पांचों लड़कियां अमेरिका के मिडलबरी पहुंच गईं। 25 दिन तक चलने वाली ट्रेनिंग में वो अपने हुनर का जलवा बिखेर रही हैं।

निक्की प्रधान बनने का सपना

पुंडी का गांव हेसल साल 2016 में भी चर्चा में था। तब भी यहां से निकला एक हीरा दुनिया के आसमान में चमका था। उस हीरे का नाम था निक्की प्रधान। महिला हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान ने ओलंपिक तक का सफर तय किया था। पुंडी भी निक्की की तरह हॉकी खेलना चाहती हैं, आगे बढ़ना चाहती हैं। अपने गांव, अपने परिवार और अपने देश का नाम रोशन करना चाहती हैं। पुंडी उस पिछड़े आदिवासी इलाक़े से आती हैं जहां मानव तस्करी बहुत आम बात है। लड़कियों को बड़े शहरों में कामकाज के लिए भेजा और बेचा जाता है। उस इलाक़े से निकलकर पुंडी की ये उड़ान वाकई कई लोगों को प्रेरणा और हौसला दे रही है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पुंडी सारू को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता है।