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खेत-खलिहान

एवोकाडो: मेक्सिको टू भोपाल-वाया इज़राइल

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज बात खाने की। बात एक ऐसे फल की जिसे सुपरफूड कहा जा रहा है। सुपरफूड यानी वो खाना जो हमारे सेहत के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद हो। हम जिस फल की बात कर रहे हैं उसका नाम है एवोकाडो। ये फल अब बहुत से युवाओं की प्लेट का हिस्सा बन चुका है। लेकिन ये भारतीय नहीं है। इसे विदेश से आयात करना पड़ता है। नतीजा ये होता है कि बाहर से आकर ये हम लोगों के घर तक पहुंचने में इतना महंगा हो जाता है कि इसे ख़रीदना आम लोगों के बस की बात नहीं रहती। लेकिन अब इस सुपरफूड फल को भारत में भी उगाने की तैयारी चल रही है और इसका जिम्मा उठाया है भोपाल के युवा हर्षित गोधा ने।

कहते हैं ना MP अजब है, सबसे ग़ज़ब है।

अब अगर मेक्सिको और इज़राइल में उगने वाले फल की खेती अपन के भोपाल में होने लगे तो है ना अजूबे वाली बात। इस अजूबे को कर दिखाया है भोपाल के युवा कारोबारी हर्षित गोधा ने।

कारोबारी परिवार में जन्मे हर्षित बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने साल 2013 में ब्रिटेन गए थे। अपनी फिटनेस पर हमेशा से ध्यान देने वाले हर्षित का वहां एवोकाडो से परिचय हुआ। हर दिन नाश्ते में एवोकाडो उन्हें ज़रूर मिलता था। फल के बारे में पता किया तो हैरान रह गए। पता चला कि वजन कम करने, दिल की बीमारी, डायबिटिज़, ऑस्टियो अर्थराइटिस से लेकर कैंसर और लीवर की परेशानियों में भी फ़ायदेमंद है। एवोकाडो की इन ख़ूबियों ने हर्षित को जैसे अपना दिवाना बना दिया। लेकिन तब हर्षित ने सोचा भी नहीं था कि यह सुपर फूड, जो उनकी डाइट का हिस्सा है, वह उनके व्यवसाय का ज़रिया भी बन जाएगा। 

एक बार एवोकाडो खाते समय उनकी नज़र इसके पैकेट पर पड़ी। उन्होंने पढ़ा कि इस मेक्सिकन फ्रूट को इज़राइल में उगाया जा रहा है। तभी उनके मन में यह सवाल आया कि एक गर्म देश होते हुए भी जब इसकी खेती इज़राइल में हो सकती है, तो भारत में क्यों नहीं?

एवोकाडो के लिए इज़रायल की यात्रा

हर्षित जब भारत लौटे तो उन्हें बाज़ार में अच्छे एवोकाडो नहीं मिले। कभी मिले भी तो बहुत महंगे। इन बातों ने हर्षित का ध्यान एक बार फ़िर एवोकाडो की तरफ़ खींच लिया। उन्होंने तय किया कि उन्हें भोपाल में ही एवोकाडो उगाने हैं।

हर्षित ने अपने परिवार से इस बारे में बात की। परिवार का साथ मिलते ही उन्होंने इसके लिए काम शुरू कर दिया। एवोकाडो की खेती के लिए सही ट्रेनिंग की ज़रूरत थी। हर्षित ने इंटरनेट से इज़रायल की कई नर्सरीज़, किसान और एवोकाडो इंडस्ट्रीज़ से जुड़े लोगों से संपर्क साधने लगे। इसी दौरान उन्हें एक किसान ने इज़रायल आकर खेती के तरीके सीखने का निमंत्रण दिया। बस फ़िर क्या था। हर्षित इज़रायल रवाना हो गए।

इज़रायल में 1 महीने की ट्रेनिंग

हर्षित साल 2017 में टूरिस्ट वीज़ा पर इज़रायल पहुंच गए। जिस किसान के साथ उनका संपर्क हुआ था उसके साथ उन्होंने एवोकाडो की खेती के तरीक़े सीखे। इरिगेशन एक्सपर्ट्स, नर्सरी चलाने वालों और एवोकाडो इंडस्ट्रीज़ के लोगों से मुलाक़ात की। उनसे एवोकाडो की खेती और कारोबार की पूरी जानकारी हासिल की।

1 महीने की ट्रेनिंग के बाद हर्षित भोपाल लौटे और एयरपोर्ट के पास अपनी 5 एकड़ ज़मीन को एवोकाडो की खेती के लिए तैयार करने लगे। खेती के लिए मिट्टी ठीक उसी तरह तैयार करवाई जैसा उन्होंने इज़रायल में सीखी थी। वो लगातार अपने इज़रायली दोस्तों के संपर्क में रहते थे। सारी तैयारी प्लान और समय के हिसाब से सही थी बस अब इज़रायल से पौधे आने का इंतज़ार था।

शुरू हुआ मुश्किलों का दौर

तैयारियों में क़रीब 2 साल का समय लगा। साल 2019 में हर्षित के खेत एवोकाडो के पौधे लगाने के लिए तैयार हो चुके थे। उन्होंने इज़रायल से पौधे मंगाने का ऑर्डर दे दिया लेकिन परमिट के चक्कर में उलझ गए। क़ानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी हो गई कि पौधे मंगवाने की स्थिति में नहीं रहे। हर्षित ने फ़िर नया ऑर्डर देने का फ़ैसला किया लेकिन तब तक कोरोना ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। इस तरह एक और साल कई तरह की उलझनों और परेशानियों की वजह से बीत गया लेकिन हर्षित हार मानने वालों में से नहीं थे। एवोकाडो के पौधों का उनका पहला कंसाइन्मेंट जुलाई 2021 में आया। 5 एकड़ की ज़मीन में एवोकाडो के 1800 पौधे लगाए गए। इन पौधों में फल आने में क़रीब 4 साल का समय लगेगा।

देशभर में पौधों की सप्लाई

भले ही एवोकाडो के पौधों में फल आने में वक़्त है लेकिन हर्षित का कारोबार अभी से चल निकला है। देश के अलग-अलग राज्यों से किसान उनसे एवोकाडो के पौधे ख़रीद रहे हैं। असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, कोडईकनाल और कुन्नूर में पौधों की बिक्री ज़्यादा है वहीं गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र से भी ऑर्डर आ रहे हैं। हर्षित ना केवल किसानों को एवोकाडो के पौधे बेच रहे हैं बल्कि उन्हें खेती के गुर भी सिखा रहे हैं। वो अपने यूट्यूब चैनल पर एक्सपर्ट्स से बातचीत का वीडियो बनाते हैं ताकि किसानों को खेती की पूरी जानकारी मिल सके। यानी हर्षित की नर्सरी से किसानों को ना केवल एवोकाडो के पौधे मिल रहे हैं बल्कि खेती के लिए पूरी मदद भी हासिल हो रही है।

क़ामयाबी की उम्मीद

हर्षित अपने काम को लेकर उम्मीदों से भरे हैं। वो बताते हैं कि ज़मीन तैयार करने, ग्रीन हाउस बनाने, सिंचाई की व्यवस्था और पौधे मंगवाने में उन्होंने क़रीब 50 लाख रुपये ख़र्च किये हैं जिसे वो जल्द ही कमाई में बदल देंगे। इस युवा कारोबारी को उसकी नई और बदलाव लाने वाली सोच के लिए शुभकामनाएं