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हर पेट को मिले रोटी

इंसान की सबसे बड़ी मजबूरी है भूख। इंसान की सबसे बड़ी लाचारी है भूख। भूख ना हालात देखती है, ना पैसे। वो अमीर को भी लगती है और ग़रीब को भी। फ़र्क़ ये है कि पैसेवाले के पास अपनी भूख को मिटाने के लिए साधन होते हैं जबकि ग़रीबों को इसके लिए जंग लड़नी पड़ती है। उनकी इसी जंग में मददगार साबित हो रहे हैं हल्द्वानी के कुछ युवा, जिन्हें हमने नाम दिय है ‘भूख से जंग के जंगबाज़’

भूख मिटा रहा है रवि रोटी बैंक

उत्तराखंड के छोटे से शहर हल्द्वानी से उम्मीदों की एक नई किरण फूट रही है जो समाज को एक नया रास्ता दिखा रही है। इस किरण का नाम है रवि रोटी बैंक। जैसा कि नाम से ही जाहिर हो रहा है कि ये संस्था ग़रीबों-ज़रूरतमंदों को नि:शुल्क खाना खिलाने का काम करती है। इस संस्था की नींव 15 अक्टूबर 2018 को पड़ी थी।

कहते हैं ना किसी भी नेक काम की शुरुआत किसी ऐसी घटना से होती है जो आपको अंदर तक झकझोर दे। इस बैंक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। पहले हल्द्वानी में ही एक ग़रीब बुज़ुर्ग गेहूं के दानों को पानी में भिगो कर खा रहा था। कुछ युवाओं ने इसे देखा और उन्हें लगा कि ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए जिन्हें दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल होता हो। फिर वो कभी-कभी अपने घरों से खाना लाकर ऐसे लोगों में बांट दिया करते थे। एक दिन एक बुज़ुर्ग ने ना सिर्फ़ खाना लेने से इनकार कर दिया बल्कि उन्हें आगे से खाना लाने से भी मना कर दिया। पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘तुम खाना रोज़ तो नहीं लाते हो, लेकिन हमें भूख तो रोज़ लगती है। हम तुम्हारा आसरा देखते रह जाते हैं’। इस बात ने इन युवाओं को एक नई दिशा दे दी और फिर शुरू हुआ ये रोटी बैंक।

मुश्किलों से जीत कर बनाया मुक़ाम

शुरुआत में ये युवा हर रात अपने-अपने घरों से खाना बनवा कर लाते थे और बस स्टेशन या रेलवे स्टेशन पर क़रीब 40-50 लोगों को खिलाया करते थे। धीरे-धीरे महसूस होने लगा कि इसे और बढ़ाने की ज़रूरत है लेकिन समस्या रोज़ खाना जुटाने की थी। लेकिन भूख से लड़ने का फ़ैसला कर चुके बाबा नीम करौली के भक्त ये युवा अब इन युवाओं ने इसे मिशन बना लिया। एक किराये की जगह ली जहां रोज़ाना खाना बनाया जाने लगा। इन युवाओं में ग़रीबों-बेसहारा लोगों के लिए काम करने की भूख जग चुकी थी। इन्होंने तय किया कि अब रात के साथ-साथ दिन में भी खाना बांटा जाएगा।

कोरोना का काला काल और रोटी बैंक

क़रीब दो साल की मशक्कत के बाद रोटी बैंक रोज़ाना सैकड़ों लोगों को खाना खिला रहा था, लेकिन इसी बीच कोरोना ने दस्तक दी और पूरी दुनिया ही बदल गई। काम-धंधे बंद हो गए। लोग बेरोज़गार हो गए। लॉकडाउन में लोग जहां-तहां फंस गए। ऐसे में रोटी बैंक हल्द्वानी में जैसे देवदूत बन गया। ऐसे वक़्त में जब अपने परिवार और जान-पहचान वाले भी काम नहीं आ पा रहे थे, रोटी बैंक ने ग़रीबों-ज़रूरतमंदों को खाना खिलाने का नेक काम जारी रखा। इसी दौरान रोटी बैंक के काम को प्रशासन ने भी नोटिस किया। और जल्द ही स्थिति ऐसी हो गई कि प्रशासन कि तरफ़ से भी अलग-अलग जगहों पर खाना पहुंचाने की अपील आने लगी। कोरोना काल में रोटी बैंक से जुड़े युवा सुबह से लेकर देर रात तक अपने मिशन में लगे रहते थे। उन्होंने कई कोरोना पीड़ितों तक को खाना पहुंचाया।

कुछ पाया लेकिन बहुत खोया

रोटी बैंक के कोरोना काल में किये गए कामों को बहुत सराहा गया। ज़िला प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं ने कई बार सम्मानित भी किया लेकिन इसी बीच एक ऐसा हादसा हुआ जिसने इन युवाओं को अंदर तक तोड़ दिया। कोरोना काल में ही 26 अगस्त 2020 को रात का खाना बांट कर लौट रहे रवि यादव की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ये उन दोस्तों के लिए बहुत बड़ा झटका था। इससे ये टूट तो गए लेकिन बिखरे नहीं। उन्होंने अपने रोटी बैंक का नाम हल्द्वानी रोटी बैंक से बदल कर रवि रोटी बैंक कर दिया। आज ये रोटी बैंक रोज़ाना दो हज़ार से ज़्यादा लोगों को दिन और रात में भोजन करा रहा है।

हल्दवानी के लोगों का मिला साथ

मूल रूप से इस रोटी बैंक को तरुण सक्सेना, रोहित यादव, संजय आर्य, नीरज साहू, प्रशांत सिंह भोजक और मनीष पाण्डेय ‘आशिक़’ चला रहे हैं, लेकिन अब शहर के कई लोग, कई संस्थाएं, कई कारोबारी और कई रेस्टोरेंट भी इससे जुड़ चुके हैं। लोग अपने घरों में होने वाले किसी आयोजन के दिन रोटी बैंक को खाना दान करते हैं। कुछ बड़े कारोबारी रोज़ाना 300 से 400 रोटियां और दालें मुहैया कराते हैं। इसी तरह तीन चार रेस्टोरेंट से भी रोटी-सब्ज़ी-दालें मिल जाती हैं। नगर निगम ने भी शहर के एक पार्क में एक किचन तैयार कर रोटी बैंक को दिया है जहां वो खाना बनवा सकें। लोगों की मिल रही इन मददों और साथ ने रोटी बैंक के काम को एक नए मुक़ाम तक पहुंचा दिया है।

समाजसेवा के दूसरे कामों में भी योगदान

रोटी बैंक समाज के हर क्षेत्र में योगदान दे रहा है। ब्लड डोनेट करना, ग़रीबों को कपड़ों और कंबल बांटना, मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की देखभाल करना, बाल सुधार केंद्रों में बंद बच्चों की बेहतरी के लिए काम किये जा रहे हैं।

नशे के ख़िलाफ़ मुहिम

उत्तराखंड में पिछले कुछ दिनों से नशीले पदार्थों का जाल फैलता जा रहा है। युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा स्मैक, गांजा, चरस, अफ़ीम की लत का शिकार हो रहा है। ऐसे में रवि रोटी बैंक के कार्यकर्ता शहर में लगातार नशे के ख़िलाफ़ लोगों को जागरूक कर रहे हैं। बच्चों के साथ मिलकर अभियान चला रहे हैं ताकि उन्हें नशे की चपेट में आने से बचाया जा सके।

रवि रोटी बैंक का ये काम ना सिर्फ़ ग़रीबों और बेबसों की मदद कर रहा है बल्कि वो हज़ारों-हज़ार युवाओं को मजबूरों के लिए काम करने की प्रेरणा भी दे रहा है। उनका ये काम सिर्फ़ हल्द्वानी या उत्तराखंड के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए एक मिसाल है।