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धरती से

तोड़ो पिंजरा तोड़ो

अपने या अपने आस-पास के घरों में आपने पिंजरे में पल रहे तोतों को देखा है ? उस तोते की कलाबाज़ियां, इंसानों की नकल उतारना शायद आपको बहुत भाता होगा। मिट्ठू और पोपट की कटोरे-कटोरे की आवाज़ आपको शायद बहुत लुभाती होगी, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि पिंजरे की ये ज़िंदगी इन तोतों के लिए कितनी भारी पड़ती है ? शायद नहीं लेकिन एक शख़्स हैं जो पिंजरों में क़ैद तोतों और दूसरे परिंदों को खुला आसमान देने के लिए पिछले 25 से ज़्यादा सालों से लगातार काम कर रहे हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी शख़्स की।

मिशन पंख

भोपाल के रहने वाले धर्मेंद्र मिशन पर हैं। मिशन का नाम है पंख। धर्मेंद्र का सपना है कि पूरे देश में कोई भी शख़्स परिंदों को पिंजरे में क़ैद ना करे। उनकी उड़ान, उनका आसमान ना छीने। पेशे से रेस्टोरेंट कारोबारी पिछले 26 सालों से अपने मिशन पंख के लिए काम कर रहे हैं। वैसे तो वो हर पक्षी को आज़ाद कराने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन ख़ास तौर पर उनका ज़ोर तोतों के लिए होता है। अब तक धर्मेंद्र 20 हज़ार से ज़्यादा परिदों को आज़ाद करा चुके हैं।

मां से मिली प्रेरणा

पिंजरे में क़ैद पक्षियों को छुड़ाने की प्रेरणा धर्मेंद्र को उनकी मां से मिली। धर्मेंद्र बताते हैं कि बचपन से ही उन्होंने देखा कि उनकी मां बहेलियों से सारे पक्षियों को ख़रीद लेती थीं और फ़िर उन्हें आज़ाद कर दिया करती थीं। धर्मेंद्र अपनी मां को अक्सर ये करते देखा करते थे। धीरे-धीरे मां का परिंदों से ये प्रेम धर्मेंद्र में भी समाहित हो गया।
मां का जाना किसी भी इंसान के लिए सबसे बड़ा दुख होता है। ये दुख धर्मेंद्र ने भी झेला लेकिन उन्होंने फ़ैसला किया कि वो अपने अंदर अपनी मां को हमेशा ज़िंदा रखेंगे। इसी वजह से उन्होंने मिशन पंख की शुरुआत की। अब वो बहेलियों से पक्षियों के पिंजरे ख़रीद कर उन्हें उड़ाने से आगे बढ़ गए। उन्होंने अपने साथ एक टीम तैयार की। अब वो लोगों के घर-घर जाने लगे और उन्हें पक्षियों को पिंजरे में रखने के नुकसान समझाने लगे। वो बकायदा लोगों के साथ कई-कई वर्कशॉप आयोजित करते हैं। लोगों को पिंजरे में रहने वाले पक्षियों की मुश्किलें और हालात की जानकारी देते हैं।

मिशन में मुश्किलों से सामना

धर्मेंद्र के लिए ये सब आसान नहीं रहा। भोपाल में ही पक्षियों को पिंजरे में पालना बहुत शौक़ की बात मानी जाती रही है। मोहल्ले के एक नहीं कई घरों में तोते या लव बर्ड्स पिंजरों में पाली जाती थीं। शुरुआत में जब धर्मेंद्र लोगों से अपने पक्षियों को आज़ाद कर देने की बात करते थे तो लोग नाराज़ हो जाते थे। कई बार तो बात ज़्यादा बिगड़ जाती थी। लेकिन धर्मेंद्र पीछे नहीं हटे। वो पिंजरे में क़ैद परिंदों को नई ज़िंदगी देने के मिशन में जुटे रहे। धीरे-धीरे उनकी ये मेहनत रंग लाने लगी। लोग भी उनका साथ देने लगे।

क़ैद में कष्टप्रद जीवन

धर्मेंद्र बताते हैं कि जिन पक्षियों को हम पिंजरे में क़ैद कर अपने घर में रख लेते हैं उनका जीवन दुश्वारियों से भरा होता है। उन्हें ताउम्र अपने पंख फैलाने तक की पूरी जगह नहीं होती है। लोग अपने हिसाब से उन्हें खाना देते हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। पिंजरे में क़ैद परिंदों की मनोदशा भी बहुत ख़राब हो जाती है। धर्मेंद्र बताते हैं कि भारत में आम तौर पर पाए जाने वाले कंठी तोते (लाल धारी वाला तोता) कुछ सालों में विलुप्त हो जाएगा। उसकी वजह ये है कि ये तोता चार से पांच दिनों में ही इंसान की आवाज़ की नकल करना शुरू कर देता है। इसी वजह से ये तोता पालने वालों की पहली पसंद है। बड़े पैमाने पर इस कंठी तोते को पकड़े जाने से इसकी नस्ल पर ख़तरा मंडराने लगा है।

धर्मेंद्र का कहना है कि तोते को अगर एक साल से ज़्यादा दिनों तक पिंजरे में क़ैद कर लिया तो उनका बाहर की दुनिया में रहना संभव नहीं हो पाता। कई तोते तो छोटे पिंजरे में क़ैद होने की वजह से पंख फैलाना तक भूल जाते हैं। ऐसे में धर्मेंद्र उन्हें आज़ाद नहीं कराते बल्कि उनके लिए बड़े पिंजरे का इंतज़ाम करवा देते हैं ताकि वो अपनी बाकि ज़िंदगी थोड़ी राहत से बिता सकें। इसके अलावा वो इन पक्षियों को पालने वालों को समय-समय पर डाइट चार्ज भेजा करते हैं।

मिशन पंख को मिली उड़ान

धर्मेंद्र के पक्षी प्रेम और उनके समर्पण ने उनके मिशन को नई उड़ान दे दी है। 26 सालों की उनकी मेहनत का असर है कि आज भोपाल को पिंजरा मुक्त शहर बताया जा रहा है। इतना ही नहीं उनका ये अभियान भोपाल के बाहर हैदराबाद और राजस्थान के सीकर तक पहुंच चुका है। मिशन पंख को अब तक 30 से ज़्यादा सम्मान और अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। लेकिन ये सम्मान और ये अवॉर्ड धर्मेंद्र की चाह नहीं हैं। वो तो बस इतना चाहते हैं कि परिंदों को उनका आसमान मिल जाए।

धर्मेंद्र शाह और उनके मिशन पंख को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं।