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धरती से

ब्रेवहार्ट

उनकी ख़ुद की ज़िंदगी की शुरुआत एक ऐसे अंधेरे से हुई थी जहां केवल और केवल संघर्ष था, तिरस्कार था, अभाव था। लेकिन वो उस स्याह ज़िंदगी से उठ खड़ी हुईं और ना केवल अपने हिस्से का उजाला हासिल किया बल्कि समाज के बिल्कुल अलग-थलग पड़े हिस्से की बच्चियों के लिए भी नया सवेरा बन रही हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी जंगबाज़ रश्मि तिवारी की।

रश्मि तिवारी उस महायज्ञ में अपना जीवन होम कर रही हैं जिसकी देश को आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। रश्मि इंडिया और भारत के बीच का फ़र्क़ मिटाने में लगी हुई हैं। रश्मि अपने आहन फाउंडेशन के साथ झारखंड के सुदूर गांवों में काम कर रही हैं। रश्मि को ख़ुद पैदा होने से पहले ही एक अपशगुन करार दिया गया था। उन्हें अपने पिता की मृत्यु के लिए दोषी माना गया। मां के साथ संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाली रश्मि ने अपने लिए रास्ते ना सिर्फ़ ख़ुद चुने बल्कि उन रास्तों पर आने वाले कंकड़-पत्थरों को भी उन्होंने दूर किया। आज रश्मि अपनी संस्था के साथ मिलकर तैयार कर रही हैं अपने ही जैसी ब्रेवहार्ट बच्चियों को…

आदिवासी लड़कियों का ‘आहन

रश्मि तिवारी ने अपनी संस्था का नाम आहन रखा है। आहन यानी नया सवेरा और वाकई रश्मि और उनकी संस्था हज़ारों आदिवासी बच्चियों के जीवन में नया सवेरा ला रही हैं। रश्मि के मुताबिक आदिवासी और वंचित समाज की क़रीब 80 फीसदी बच्चियां किसी ना किसी तरह के शोषण का शिकार बनती हैं। मानव तस्करी, बाल विवाह, शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न आम बात है। लेकिन रश्मि पिछले 7 साल से भी ज़्यादा समय से इस स्याह तस्वीर को बदलने में जुटी हैं।

ज़मीन से जुड़कर काम करने की ज़िद

रश्मि अपनी संस्था के साथ झारखंड के 60 गांवों में 5 हज़ार से ज़्यादा लड़कियों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने इसमें स्थानीय लोगों, पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय स्कूलों को भी अपने साथ जोड़ा है। रश्मि इन बच्चियों को ट्रैफ़िकिंग से बचाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम भी चला रही हैं। मुश्किल से मुश्किल हालात भी उन्हें अपने मिशन से डिगा नहीं पाए। बच्चियों को साथ जोड़ने के लिए उनके मां-बाप का साथ ज़रूरी था। बेहद ग़रीबी और तंगहाली में जीने वाले इन लोगों की बार-बार काउंसलिंग की गई। उन्हें ये समझाया गया कि बच्चियों को शिक्षा से जोड़ने से ना केवल उनका बल्कि पूरे परिवार का भविष्य बदल सकता है। उनकी ये कोशिशें रंग भी लाईं।

साक्षर से समर्थ तक का सफ़र

रश्मि इन गांवों की लड़कियों को ना केवल शिक्षा दे रही हैं बल्कि उन्हें सशक्त भी बना रही हैं। सामान्य शिक्षा के साथ-साथ उन्हें कंप्यूटर समेत कई तरह के वोकेशनल स्किल की ट्रेनिंग दी जा रही है। डिजिटल लिट्रेसी, लाइफ स्किल्स और इंग्लिश की विशेष तौर पर पढ़ाई कराई जा रही है ताकि वो बाहर की दुनिया में मजबूती के साथ खड़ी हो सकें। उन्हें चाइल्ड राइट्स की जानकारी दी जा रही है ताकि वो अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें। उनकी करियर काउंसलिंग की सुविधा दी जाती है ताकि बच्चियां आगे चल कर अपना भविष्य ख़ुद चुन सकें।
इस संस्था से जुड़ कर हाईस्कूल पास करने वाली बच्चियां अपने परिवार की पहली सदस्य हैं जिन्होंने ये मुक़ाम हासिल किया है। इनमें से 98% बच्चियां वो हैं जिनकी माएं गांव में देसी शराब बेचा करती हैं। संस्था से जुड़ी हुई सभी बच्चियों ने 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं पास की हैं। एक बच्ची ने विज्ञान और गणित के विषय लेकर 12वीं में 76% नंबर यानी डिस्टिंक्शन हासिल किया।

खेल ने खोला नया रास्ता

झारखंड की आदिवासी बच्चियों ने पहले भी कई खेलों में अपना परचम लहराया है। रश्मि ने उनकी इस काबिलियत को उनका हथियार बनाया और बच्चियों को खेल से जोड़ दिया। उन्हें फुटबॉल और दौड़ की पूरी ट्रेनिंग दिलाई। नतीजा सामने है। ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने आहन फाउंडेशन की दो फुटबॉल टीमों को मान्यता दी है। आहन की बच्चियां आज फुटबॉल ग्राउंड पर अपना दम दिखा रही हैं। इतना ही नहीं दिल्ली में आयोजित 5 किलोमीटर की मैराथन दौड़ में आहन की रिंकी मुंडा ने गोल्ड मैडल जीता है।

कला से जोड़ कर दी नई पहचान

पढ़ाई, वोकेशनल कोर्स और खेल के अलावा रश्मि तिवारी ने इन बच्चियों को स्थानीय कला से भी जोड़ दिया। जब इन बच्चियों के हाथों से निकले लोक रंग की छाप काग़ज़ों पर पड़ी तो जैसे चमत्कार हो गया। एक से बढ़ कर एक पेंटिंग देखकर रश्मि भी हैरान रह गईं। उन्होंने बच्चियों की इस कला को बाज़ार से जोड़ दिया। पेंटिंग से मिलने वाले पैसे से उन बच्चियों को आर्थिक मदद मिलती है।

अपने संघर्षों से बदली दूसरों की ज़िंदगी

अक्सर संघर्षों में ज़िंदगी शुरू करने वाले लोग, हालात बदलने पर बदल जाते हैं। लेकिन रश्मि ने अपने उन संघर्षों को अपने जीवन का रास्ता बना लिया। उनकी छोटी सी कोशिश आज बड़ा आकार ले चुकी है जो हज़ारों बच्चियों का जीवन बदल रही हैं।

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट रश्मि तिवारी, उनके साथियों और उनकी संस्था को शुभकामनाएं देता है। अगर आपके आस-पास भी रश्मि तिवारी जैसी समाज और देश को बदलने के लिए काम करने वाली शख़्सियत हैं तो हमें mystory@indiastoryproject.com पर उनकी कहानी भेजिए