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किचन से कारोबार का सफ़र

हर घर की रसोई अपने आप में रोज़गार का बड़ा ज़रिया बन सकती है। घर की साधारण कामकाजी महिलाएं कारोबारी बन सकती हैं और अपने स्वाद के दम पर दुनिया को अपना मुरीद बना सकती हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मुंबई की रहने वाली गीता पाटिल ने। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज की कहानी गीता की।

पाटिल काकी के व्यंजनों की धूम

मुंबई में सांताक्रूज के 1200 वर्गफुट के एक किचन में बन रहे पकवानों की ख़ूशबू और स्वाद मुंबई ही नहीं, मुंबई के बाहर भी अपना जलवा बिखेर रहा है। और पकवान भी कौन से, वो जो महाराष्ट्र के घर-घर में बनाए जाते हैं। पूरनपोली, चकली, गुझिया, चिवड़ा, मोदक और लड्डू। गीता पाटिल अपने इन प्रोडक्ट्स को पाटिल काकी के ब्रांड नेम के साथ बेचती हैं। कभी शून्य से शुरू हुआ उनका ये सफ़र आज करोड़ों तक पहुंच चुका है।

खाना बनाने के शौक़ ने दी नई दिशा

गीता मुंबई की ही रहने वाली हैं। अपनी आई यानी मां का हाथ बंटाते-बंटाते उनका कम उम्र से ही रसोई घर से राब्ता हो गया था। उनकी मां रोज़ाना 20 टिफ़िन बनाकर भेजा करती थी। गीता अपनी मां की मदद किया करती थी। इस मदद ने ही उन्हें रसोई का मास्टर बना दिया। शादी के बाद गीता विले पार्ले से सांताक्रूज चली आईं और साथ में लाईं अपनी आई से सीखी रसोई की जादूगरी। गीता के बच्चे बताते हैं कि स्कूल में उनका टिफिन बिल्कुल अलग होता था। कभी सब्ज़ियों से भरे हुए परांठे तो कभी समोसे। ऐसे पकवान जिनमें स्वाद के साथ-साथ सेहत भी भरपूर होती थी। गीता अपने आसपास रहने वाले मुस्लिम और ईसाई परिवारों के घर भी अक्सर महाराष्ट्रियन व्यंजन भेजा करती थीं। धीरे-धीरे लोग गीता से ऑर्डर पर पकवान बनवाने लगे।

मुश्किल के वक़्त में नई शुरुआत

गीता के पति बीएमसी के डेंटल लैब में काम करते थे। साल 2016 में किन्हीं कारणों से उनकी नौकरी छूट गई। अब परिवार के सामने संकट खड़ा हो गया। तब गीता ने अपने रसोई के हुनर का इस्तेमाल किया और परिवार को इस मुसीबत से मुक्ति दिलाई। गीता ने साल 2016 से अपने व्यंजनों का बिजनेस शुरू कर दिया। गीता के पति भी उनके साथ इस काम में जुट गए। आसपास के लोगों ने ऑर्डर देकर गीता का साथ दिया। लोग उनके स्वाद के जादू से पहले से ही परिचित थे। बहुत कम समय में गीता ने अपना काम जमा लिया। अब मोहल्ले के अलावा बाहर से भी गीता को ऑर्डर मिलने लगे।

लॉकडाउन ज़िंदगी और ‘पाटिल काकी’

साल 2016 में शुरू हुआ गीता पाटिल का ये काम 2020 तक अच्छा जम चुका था। लेकिन अब दुनिया में कोरोना के भयावह काल ने दस्तक दे दी थी। 2021 में देश भर में लॉकडाउन लगा दिया गया। इसी वजह से गीता के बेटे विनीत घर में रहने लगे तो उन्होंने अपनी मां और अपने पिता के इस काम में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। अब अनुभव और युवा जोश के इस मिलन ने पूरे काम को नया कलेवर दे दिया। विनीत ने इस काम को नया नाम दिया –‘पाटिल काकी’। ब्रांड नेम के बाद पैकिंग में बदलाव किया गया। सोशल मीडिया पर प्रमोशन शुरू किया गया। पाटिल काकी के नाम को ब्रांड बनते दे नहीं लगी, बल्कि लोगों ने इसे और हाथों-हाथ लिया। अब पाटिल काकी के प्रोडक्ट मुंबई के बाहर भी पहुंचने लगे। डिमांड बढ़ी तो काम भी बढ़ा। अब उन्होंने इस काम के लिए एक जगह ली। 25 महिलाओं को साथ जोड़ा ताकि ऑर्डर पूरे किये जा सकें। जिस काम को 2016 से 2020 तक गीता और उनके पति ने मिलकर 12 लाख रुपये सालाना तक पहुंचाया था अब वो काम करोड़ों तक पहुंच गया। गीता के साथ जुड़ कर ना केवल उन 25 महिलाओं को रोज़गार मिला बल्कि डिलिवरी और दूसरे कामों के लिए भी लोग रखे गए हैं। आज के समय में जब स्टार्ट अप्स को लेकर इतना शोर मचाया जाता है पाटिल काकी का ये स्टार्ट अप बिना शोर-शराबे के अपना काम कर रहा है।