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धरती से

बदलाव लाने वाली बबीता

कहते हैं ना कि नारी अगर ठान ले तो पहाड़ को भी पिघला दे। बस कुछ ऐसा ही हुआ बुंदेलखंड के छतरपुर में जब महिला शक्ति ने गांव की किस्मत ही बदल डाली। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी महिला शक्ति की।

एक सोच ने बदल दी गांव की तक़दीर

पानी के तरसते बुंदेलखंड की कई कहानियां हैं। तक़लीफ़ों की, संघर्षों की, जज़्बों की, जिजिविषा की। उन्हीं में से एक कहानी है बबीता राजपूत की। छतरपुर के अंगरोठा गांव की रहने वाली बबीता भी आम लड़कियों जैसी ही थी। गांव में पली-बढ़ी लेकिन उसकी सोच कुछ अलग थी। सोच जो बदलाव लाने वाली थी।

अंगरोठा भी बुंदेलखंड के दूसरे गांवों की तरह प्यासा था। गर्मियों की शुरुआत के साथ ही पानी की समस्या इतनी विकराल हो जाती थी कि पूरी ज़िंदगी ही पटरी से उतर जाती थी। बूंद-बूंद पानी के लिए ना सिर्फ़ खेत तरसते थे बल्कि इंसान और जानवरों के लिए भी पानी जुटाना मुश्किल हो जाता था।

महिलाओं के लिए ये समय बहुत ही कष्टप्रद हो जाता था। वैसे ही उनकी ज़िंदगी कम दुश्वारियों में नहीं थी, गर्मियों में पानी लाने के लिए तपते दिनों में मीलों का सफ़र उनके लिए और भारी हो जाता था। लेकिन लोग जैसे इसके आदि हो गए थे। हालातों से समझौता कर लिया था लेकिन किसी ने भी हालात में बदलाव के बारे में नहीं सोचा। ये सोच आई बबीता राजपूत के मन में।

पानी का संकट दूर करने की पहल

बबीता ने पानी की समस्या दूर करने के उपाय खोजने शुरू कर दिये। इसी क्रम में उन्होंने गांव की सूख चुकी झील को फ़िर से ज़िंदा करने का फ़ैसला किया। लेकिन सवाल तो ये था कि झील में फ़िर से पानी आएगा कहां से। बबीता ने इसका भी रास्ता खोज लिया। गांव के पास के पहाड़ के दूसरी तरफ बहती नदी से पानी लाने का फ़ैसला किया गया। बबीता ने जब ये बात लोगों को बताई तो सब हैरत में पड़ गए। कइयों ने सवाल उठाए कि पहाड़ काट कर कैसे पानी लाया जा सकता है ? कइयों ने इसे नामुमकिन काम बता दिया लेकिन बबीता इन सवालों से डरी नहीं बल्कि और मजबूत हुईं। उन्होंने गांव के बुज़ुर्गों से बात की और उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया-समझाया। इसके बाद बबीता ने गांव की महिलाओं से बात करनी शुरू की। बबीता उन्हें ये समझाने में कामयाब रही कि अगर पानी गांव तक आ गया तो हर किसी की ज़िंदगी खुशहाल हो जाएगी। बबीता की बात का असर ऐसा हुआ कि गांव की 200 महिलाओं ने हाथों में कुदाल और फावड़े थाम लिये।

पहाड़ काट कर बनाई नहर

बबीता और गांव की 200 महिलाओं के जज़्बे और हौसले के आगे पहाड़ की मजबूती भी नहीं टिक सकी। 15 महीने के अथक प्रयास से इन लोगों ने पहाड़ को काट डाला और 107 मीटर लंबी खाई खोद कर नदी का पानी सूखी हुई झील तक ले आईं। गांव में पानी पहुंचते ही जैसे सब कुछ बदल गया। लोगों को अब पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता। झील में पानी आने से भूजल स्तर में भी सुधार हुआ। खेतों और जानवरों के लिए भी पर्याप्त पानी मिलने लगा। यहां तक कि आस-पास के गांवों की भी जल समस्या दूर हो गई।

महिलाओं को जल संरक्षण अभियान से जोड़ा

एक प्रयास से बबीता ने गांव की तस्वीर बदल दी थी लेकिन अब वो रुकना नहीं चाहती थीं। उन्होंने गांव की उन्हीं 200 महिलाओं को साथ लेकर जल और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना शुरू कर दिया। गांव की झील के आस-पास 500 से अधिक पेड़ लगाए गए। आसपास के गांवों में भी जल संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाया। बबीता चाहती हैं कि हर कोई पानी का मोल समझे।

मन की बात में बबीता का ज़िक्र

बबीता के इस भगीरथ प्रयास की गूंज दिल्ली तक भी पहुंची। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में बबीता का ज़िक्र किया और जल संरक्षण और गांव तक पानी लाने के उनके अभियान की तारीफ़ भी की। बेहद ग़रीब परिवार में जन्मी बबीता आज अपनी अलग सोच की वजह से सैकड़ों-हज़ारों लोगों की प्रेरणा स्त्रोत हैं। अगर आपके आसपास भी बबीता जैसी शख़्सियत हैं जो अपने प्रयासों से बदलाव ला रहे हैं तो हमें भेजिए उनकी कहानी, हमारे ईमेल mystory@indiastoryproject.com पर