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बंदे में है दम

महिला सशक्तिकरण में मील का पत्थर

वो महिला सशक्तिकरण की मजबूत चेतना हैं। वो एक आंदोलन हैं जो अनवरत महिलाओं को आगे बढ़ाने के अभियान में जुटी हुई हैं। एक अर्थशास्त्र की छात्रा, जिसने समाजवाद के लिए आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई, मुंबई जैसे महानगर को छोड़ कर बिहार के एक गांव में किसानों के बीच रही और फ़िर ग्रामीण महिलाओं के लिए एक ऐसा क़दम उठाया जो ना केवल मील का पत्थर साबित हुआ बल्कि दुनिया भर में एक नज़ीर बन गया। वो देश के पहले ग्रामीण महिला सहकारी बैंक की संस्थापक हैं। हम बात कर रहे हैं चेतना सिन्हा की।

मुंबई से बिहार तक का सफ़र

चेतना की अब तक की यात्रा बड़ी दिलचस्प रही है। मुंबई में जन्मी चेतना ने बीकॉम और अर्थशास्त्र मास्टर्स तक की पढ़ाई की है। ये वो दौर था जब देश में एक नई राजनीतिक चेतना का जन्म हुआ था। तत्कालीन केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरे देश में क्रांति की एक लहर थी। पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाक़ात जय प्रकाश नारायण से हुई। वो युवाओं से मिलकर उन्हें गांवों में काम करने को प्रेरित कर रहे थे। चेतना के लिए ये फ़ैसला आसान नहीं था लेकिन वो पीछे नहीं हटी। जेपी से प्रभावित चेतना भी बिहार चली आई। समाजवाद के गढ़ में उन्होंने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। सालों तक वो ग्रामीण परिवेश में रहीं, ग्रामीण महिलाओं और किसानों के बीच काम किया। उन्हें जागरूक किया। आंदोलन के दौरान ही उनका परिचय किसान नेता विजय सिन्हा से हुआ। ये परिचय गहरा हुआ और दोनों ने शादी कर ली।

गांव से हमेशा जुड़ाव

केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भले ही संपूर्ण क्रांति आंदोलन ख़त्म हो गया लेकिन चेतना का गांव से कनेक्शन नहीं छूटा। वो गांव से कभी अलग हो ही नहीं पाई। पति विजय सिन्हा महाराष्ट्र में सतारा के म्हस्वड में खेती किया करते थे तो चेतना भी वहीं रहने लगी। वो आसपास के गांवों में घूम-घूम कर लोगों को अलग-अलग विषयों पर जागरूक किया करती थी। इसी दौरान वो सतारा पहुंची जहां से उनकी ज़िंदगी की दिशा पूरी तरह बदल गई। उन्होंने एक ऐसे काम की शुरुआत की जिसने ना केवल कई रूढ़ियों को तोड़ा बल्कि ग्रामीण महिलाओं के लिए उम्मीद की एक नई किरण भी बिखेर दी।

महिला सहकारी बैंक का सपना

सतारा में उन्होंने भीषण गर्मी में रोज़गार गारंटी स्कीम के तहत पत्थर तोड़ती महिलाओं को देखा। तभी उनके दिमाग में इन महिलाओं के लिए कुछ करने का विचार आया। उन्होंने तय किया कि वो ग्रामीण महिलाओं के लिए बैंक खोलेंगी। उन्होंने सोचा कि कड़ी मशक्कत के बाद चंद रुपये कमाने वाली महिलाओं की मेहनत को उचित सम्मान मिलना चाहिए। इसी मक़सद के साथ उन्होंने सहकारी बैंक शुरू करने का फ़ैसला किया। ये साल था 1995। सबसे पहले उन्होंने इस बात की जानकारी इकट्ठी की कि सहकारी बैंक खोलने की प्रक्रिया क्या है। सारी जानकारी जुटाने के बाद उन्होंने म्हस्वड की 600 महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। ये सारी महिलाएं ग्रामीण इलाक़े की थी। चेतना ने इन महिलाओं को बतौर प्रमोटिंग मेंबर बनाया और सहकारी बैंक का प्रस्ताव रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भेजा हालांकि उनका ये पहला प्रस्ताव आरबीआई ने ख़ारिज़ कर दिया।  वजह ये थी कि जिन 600 महिलाओं को चेतना ने प्रमोटर बनाया वो सबकी सब निरक्षर थी। सहकारी बैंक के प्रस्ताव पर उनके अंगूठे लगे थे। भले ही रिज़र्व बैंक ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया लेकिन चेतना ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी सभी प्रमोटर को बैंक के कामकाज, लोन और ब्याज की गणना की ऐसी ट्रेनिंग दी कि वो इसमें निपुण हो गईं। इसके बाद चेतना इन महिलाओं के एक प्रतिनिधिमंडल को लेकर रिज़र्व बैंक के अधिकारियों से मिलने पहुंच गईं। वहां गांव की इन्हीं महिलाओं ने अधिकारियों से बातचीत की। इस बात का दावा कर दिया कि अधिकारी इन महिलाओं से ब्याज की गणना के बारे में कुछ भी पूछ लें, अगर महिलाओं ने जवाब नहीं दिया तो वो सहकारी बैंक का प्रस्ताव ख़ारिज़ कर दें। ग्रामीण महिलाओं के इस आत्मविश्वास  को देखकर आरबीआई ने चेतना के बैंक के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी। साल 1997 में भारत के पहले महिला सहकारी बैंक माण देशी बैंक की स्थापना हुई।


महिलाओं का बैंक, लोन केवल महिलाओं को

ये बैंक अपने 25 साल पूरे कर चुका है। इतने सालों में सतारा के अलावा सोलापुर, सांगली, रायगढ़ के साथ-साथ कर्नाटक में भी इस बैंक की ब्रांच है जिनमें करीब 2 लाख ग्राहक हैं। इनमें अधिकांश ग्राहक महिलाएं हैं। बैंक का साफ़ नियम है कि ग्राहक तो कोई भी बन सकता है लेकिन लोन केवल महिलाओं को मिलेगा। अब तक माण देशी बैंक 1 लाख से अधिक महिलाओं को लोन दे चुका है। कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो कई बार लोन ले चुकी हैं। इस बैंक ने ना केवल महिलाओं को बचत करना सिखाया बल्कि इसकी मदद से उन्होंने अपने परिवार के साथ-साथ ख़ुद के लिए भी बहुत कुछ किया। कई महिलाओं ने घर बनवाए, कई ने ज़मीन ख़रीदी, कुछ ने शादी-ब्याह में ख़र्च किये। ये बैंक स्कूली लड़कियों को साइकिल ख़रीदने के लिए लोन देता है।
अगर कोई महिला अपने व्यावसाय के लिए ट्रेनिंग लेना चाहे, जैसे अगर वो सिलाई-कढ़ाई सिखना चाहे तो फ़ीस के पैसे भरने के लिए ये बैंक उसे लोन मुहैया करवाता है। ट्रेनिंग के बाद अगर सिलाई मशीन ख़रीद कर काम शुरू करना हो तो भी माण देशी बैंक लोन देता है। ये बैंक ग्रामीण इलाक़े से जुड़ा है इसलिए इसमें छोटे निवेशकों का पूरा ध्यान रखा जाता है। 10-20 रुपये तक जमा करने की सुविधा और 100-200 रुपये तक के लोन भी दिये जाते हैं। ये बैंक ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल संवाददाता की सुविधा भी देता है। इसमें महिला कर्मचारी गांव-गांव जाकर महिलाओं को बैंकिंग की सुविधा मुहैया करा रही हैं। इसमें डॉक्यूमेंट जमा करने से लेकर पैसे निकालने और जमा करने की सुविधा तक है। बैंक में महिला और पुरुष दोनों कर्मचारी हैं लेकिन ज़्यादातर महिलाएं ही हैं।

ई-कार्ड और एटीएम की सुविधा

चेतना सिन्हा की मेहनत और माण देशी बैंक से जुड़ी महिलाओं का परिश्रम रंग ला रहा था। साल 2021 में इन्होंने देश का पहला महिला कॉमर्स चैंबर स्थापित कर दिया। इसके बाद एचएसबीसी बैंक के सहयोग से उनके सभी ग्राहकों को ई कार्ड की सुविधा भी मिल गई। माण देशी बैंक ने अपने ग्राहकों के लिए एटीएम की फैसेलिटी भी मुहैया करवाई है।

बढ़ती दुनिया के साथ चलने का हौसला

चेतना सिन्हा ने ना केवल बैंक स्थापित कर महिलाओं को आर्थिक आज़ादी दी, उन्होंने बचत और बैंकिंग सिखाई बल्कि इस बदलती दुनिया के साथ आगे बढ़ने का हौसला भी दिया। फाइनेंसियल और डिजिटल लिट्रेसी के अलावा अपना काम धंधा शुरू करने के लिए एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट, देशी एमबीए, पारा-वेट ट्रेनिंग जिसके ज़रिये महिलाओं को पशुओं के इलाज की ट्रेनिंग मिली और लाइफ़ स्किल्स और हेल्थ वर्कशॉप भी आयोजित किये। 63 हज़ार महिलाओं ने माण देशी बैंक के इन कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। 20 हज़ार से ज़्यादा महिलाओं ने इसके टोल फ्री नंबर पर कॉल कर जानकारी हासिल की, 24 हज़ार महिलाओं ने अकाउंटेंसी की ट्रेनिंग ली और 12 हज़ार महिलाओं ने अपना नया काम शुरू किया।

माण देशी महोत्सव

चेतना इन ग्रामीण महिलाओं को वो मंच देना चाहती हैं जिससे ये दुनिया को ये दिखा सकें कि वो किसी से कम नहीं हैं। इसके लिए माण देशी महोत्सव की शुरुआत की गई है। इसमें ग्रामीण महिला कारीगरों, कारोबारियों के उत्पादों को शहरी उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा रहा है। ऑर्गेनिक फूड प्रोडक्ट, हाथ से बनाये गए बैग, ज्वेलरी, सजावटी सामान को सीधे ग्राहकों को बेचा जा रहा है।

चेतना को दुनिया का सलाम

ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में जुटी चेतना के काम की धमक पूरी दुनिया में है। साल 2018 में उन्हें वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम में सह अध्यक्ष बनाया गया। इससे पहले साथ 2005 में उन्हें जानकी देवी बजाज एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड, अशोका चेंजमेकर अवार्ड, 2009 में गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड, 2010 में सोशल इनोवेशन अवॉर्ड और 2013 में सोशल एंटरप्रेन्योर का सम्मान दिया गया। साल 2017 में उन्हें फोर्ब्स सोशल एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड से नवाज़ा गया।

हम आधी आबादी के न्याय की बात करते हैं, ऐसे में अगर ग्रामीण परिवेश की महिलाएं पीछे रह जाएंगी तो आधी आबादी को न्याय कैसे मिलेगा। कुछ इसी सोच के साथ नई चेतना को जन्म देने वाली चेतना सिन्हा को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट सलाम करता है।