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बंदे में है दम

जीवटता की मिसाल बिनो देवी

सोचिये अस्सी साल की उम्र में आप क्या क्या कर सकते हैं? बहुत ज़्यादा सोचने पर भी बीमारियों से जूझने से अधिक कुछ नहीं सूझ रहा? तो फिर आपको मिलना चाहिए हमारी आज की स्टोरी की नायिका लौरेम्बम बिनो देवी से। अस्सी साल की बिनो देवी मणिपुर की रहने वाली हैं और राज्य की लुप्त होती कला लीबा एप्लिक आर्ट को जीवित रखने में जुटी हुई हैं। बिनो देवी को 80 साल की उम्र में पद्मश्री से सम्मानित किया है।

53 साल पहले शुरू की कला यात्रा

लौरेम्बम बिनो देवी बीते 53 साल से मणिपुर की इस सांस्कृतिक निधि को बचाने और उसके पुनरुद्धार की मुहीम चला रही हैं। साल 1944 में जन्मी बिनो देवी ने इस कला को अपनी सास, राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित एल इबेटोम्बी देवी से सीखा। उनकी इस कला यात्रा में सबसे सुखद है उनका इस कला को मणिपुर राज्य आयोग की मदद से राज्य की महिला क़ैदियों को इस कला से जोड़ना। बिनो देवी ने दिल्ली स्थित आईजीएनसीए और मणिपुर राज्य संग्रहालय की मदद से साल 1995 से लीबा एप्लिक आर्ट को सिखाने की शुरुआत की। इसके बाद साल 2004 में मणिपुर सरकार, मणिपुर राज्य फ़िल्म निगम और मणिपुर महिला आयोग के साथ जुड़कर इस कला के प्रशिक्षण की शुरुआत की। मणिपुर या दिल्ली ही नहीं, बिनो देवी इस कला को भोपाल तक में पहुंचा चुकी हैं। बिनो देवी के तीन छात्रों को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है।

राजसी वस्तुओं को कर चुकी हैं दुरुस्त

सालों पहले लौरेम्बम बिनो देवी ने मणिपुर राज्य कला अकादमी में लीबा नामक मणिपुर की तालियों की कला का उपयोग करके महाराजा चंद्रकीर्ति के ध्वज को पुनर्स्थापित किया था। उन्होंने महाराज कुलचंद्र सिंह (1890-91) के उपयोग किए जाने वाले दुर्लभ मखमली जूतों की दो जोड़ी की भी मरम्मत की, जो अब कंगला संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखी हुई हैं।

क्या है लीबा कला

मणिपुर की प्राचीन ताल कला लीबा, शाही युग के दौरान लोकप्रिय थी। पुराने दिनों में लीबा का अभ्यास ‘फिरिबी लोइशांग’ में किया जाता था। फिरिबी लोइशांग देवताओं और राजघरानों के लोगों के पहने जाने वाले कपड़ों को ठीक करने की जगह थी। जूतों सहित शाही परिवार द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकांश परिधान ज़्यादातर लीबा तकनीक का उपयोग करके डिज़ाइन किए जाते हैं। हालाँकि, वर्तमान दिनों में लीबा कला लुप्त हो रही है। लीबा के कलाकारों की संख्या ख़त्म हो रही है। अब बिनो जैसे कुछ कलाकार बचे हैं जिन्हें ये कला विरासत में मिली है।

मरने के बाद कैसे बचेगी कला ?

बिनो देवी की चिंता ये भी है कि उनके जाने के बाद ये कला कैसे बचेगी। इसी वजह से उन्होंने एक क़िताब लिखने की शुरुआत की ताकि इस कला का दस्तावेज़ीकरण किया जा सके। वो कहती हैं कि पुस्तक का प्रकाशन मेरा सपना है। इस विलुप्त हो रही कला को वो दस्तावेज के रूप में सुरक्षित और संरक्षित रखना चाहती हैं। उन्हें यकीन है कि साल 2023 तक उनकी पुस्तक प्रकाशित हो जाएगी।

अनोखी कलाकार हैं बिनो देवी

बिनो का अनूठा कौशल यह है कि वह लीबा के डिजाइन को काटने से पहले कभी कोई रूपरेखा नहीं बनाती है। वह सीधे कैंची का उपयोग करके डिज़ाइन को काटती है और सुई और धागे का उपयोग कर कलाकृतियां तैयार कर देती हैं।

मन की बात में प्रधानमंत्री ने किया जिक्र

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जनवरी को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 85 वें एपिसोड में बिनो का भी ज़िक्र किया था। राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने दशकों से मणिपुर की लीबा कपड़ा कला को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए बिनो की सराहना की थी। प्रधानमंत्री ने बिनो देवी के बारे में कहा था- “वह हमारे देश की एक गुमनाम नायक हैं, जिन्होंने सामान्य परिस्थितियों में असाधारण काम किया है।”

बिनो देवी स्वस्थ रहें और इस कला के लिए अपने काम को यूं ही आगे बढ़ाती रहें, हमारी यही शुभकामनाएं हैं।