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बंदे में है दम

ज्ञान के लिए महादान

लोग सरकारी नौकरी करना चाहते हैं ताकि वर्तमान के साथ-साथ उनका भविष्य भी सुरक्षित रहे। रियाटरमेंट के बाद पेंशन और ग्रेच्युटी के पैसे उम्र गुजारने के काम आते हैं। लेकिन हम जिस शख्स की बात कर रहे हैं उन्होंने अपनी 38 साल की नौकरी के बाद मिली पेंशन की रक़म आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए दान कर दी। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज कहानी पन्ना के इसी हीरे की, नाम है विजय कुमार चंसोरिया।

पन्ना के हीरे विजय कुमार

इस साल जनवरी में विजय कुमार अपनी 38 साल की सरकारी सेवा से रिटायर हो गए। वो संकुल केंद्र रक्सेहा में खंदिया के प्राथमिक स्कूल के सहायक शिक्षक थे। रिटायरमेंट के वक़्त स्कूल में ही उनके विदाई समारोह का आयोजन किया गया। स्कूल के प्रिंसिपल, अध्यापक और बच्चे इसमें मौजूद थे। इसी मौक़े पर विजय कुमार ने कुछ ऐसा एलान किया कि सुनने वाले हैरान रह गए। उन्होंने अपनी पेंशन की पूरी रक़म 40 लाख रुपये बच्चों की शिक्षा के लिए दान करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि ये रक़म इन बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध कराने में मददगार साबित होगी। उन्होंने इसकी ज़िम्मेदारी संकुल केंद्र के अधिकारियों पर सौंप दी कि वो इन पैसों का बच्चों की शिक्षा के लिए किस तरह इस्तेमाल करते हैं। ख़ास बात ये है कि पन्ना का ये इलाक़ा आदिवासी बहुल है और विजय कुमार की सोच यही है कि शिक्षा की ज्योत से आदिवासी समाज के बच्चों तक भी प्रकाश पहुंचे।

फ़ैसले में परिवार का पूरा साथ

उम्र के इस पड़ाव में जब हर फ़ैसले में बच्चों का दखल होता है, उस समय 40 लाख रुपये दान करने का फ़ैसला क्या आसान होगा? इसका जवाब है बिल्कुल हां। कम से कम विजय कुमार के लिए तो ज़रूर। विजय कुमार के दो बेटे सरकारी नौकरी कर रहे हैं। बेटी की शादी हो चुकी है। पूरे परिवार में किसी बात की कोई कमी नहीं है। ऐसे में विजय कुमार ने इन पैसों के सही इस्तेमाल का फ़ैसला लिया। इसमें पूरे परिवार ने उनका साथ दिया। विदाई कार्यक्रम के दौरान तो उनकी पत्नी के साथ परिवार के भी कई सदस्य मौजूद थे।

अभाव का मर्म समझते हैं विजय कुमार

एक शिक्षक के रूप में विजय कुमार ने 38 साल बच्चों को शिक्षा से रू-ब-रू कराया। उनका मक़सद बच्चों को ना केवल साक्षर बनाना था बल्कि उन्हें एक नई और सकारात्मक दिशा भी देना था। वो उन बच्चों पर ज़्यादा ध्यान देते थे जो अभावों की ज़िंदगी बसर कर रहे थे। इसकी एक बड़ी वजह ये भी थी कि विजय कुमार का बचपन भी अभाव में गुज़रा था। केवल 13 साल की उम्र में उन्हें रिक्शा चलाना पड़ा। उससे होने वाली कमाई से घर के ख़र्च चलते। तंगी की वजह से दसवीं के बाद पढ़ाई रूक गई। बड़ी मुश्किल पैसों का इंतज़ाम कर फ़िर से पढ़ाई शुरू की लेकिन इसके लिए उन्हें घर छोड़ कर एक रिश्तेदार के यहां जाना पड़ा। वहां रात में पढ़ाई के लिए रोशनी का इंतज़ाम नहीं था तो वो स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ा करते थे। तमाम दिक़्क़तों और परेशानियों को पीछे छोड़ विजय कुमार ने पढ़ाई में अपना पूरा ध्यान लगाया। अच्छे नंबरों से हायर सेकेंडरी पास की। इसी तरह आगे की पढ़ाई करते हुए उन्होंने सरकारी शिक्षक की भर्ती परीक्षा पास की।
जीवन के 38 साल शिक्षा के महायज्ञ में आहुति देने के बाद विजय कुमार चंसोरिया ने नौकरी से अर्जित अपनी पूरी जमापूंजी इसी महायज्ञ में होम कर दी है। इस महायज्ञ का प्रतिफल इस समाज और इस देश को ज़रूर मिलेगा। विजय कुमार जैसे शिक्षक वास्तव में आदर्श शिक्षक हैं। ऐसे ही शिक्षकों के लिए श्लोक है
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥