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बंदे में है दम

मुश्किलों से लड़ने वाली नीलोफ़र

कई लोग ज़िंदगी के मुश्किल हालातों से समझौता कर लेते हैं। परेशानियों से हार मान लेते हैं और जैसा चल रहा है वैसा ना केवल चलने देते हैं बल्कि ख़ुद को भी उसी हालात में ढाल लेते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो मुश्किल बाज़ियों को भी पलट देते हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसी ही कहानी लेकर आया है। ये कहानी है कश्मीर में रहने वाली नीलोफ़र की।

मशरूम की खेती से बदले हालात

नीलोफ़र जम्मू-कश्मीर के पुलवामा की रहने वाली हैं। एक छोटे से गांव गंगू की निवासी निलोफ़र की पहचान एक युवा किसान और युवा कारोबारी के रूप में फैल रही है। नीलोफ़र मशरूम उत्पादक हैं। वो अपने घर में ही मशरूम उगा रही हैं और उससे अच्छी कमाई कर रही हैं। वो इन मशरूमों को स्थानीय बाज़ार में बेचती हैं। क़रीब दो साल पहले नीलोफ़र ने इसकी शुरुआत की थी। नीलोफ़र के मुताबिक उन्हें एक बार की फसल से 60 से 70 हज़ार रुपये तक की आमदनी हो रही है।

तंगहाली से मुक्ति की मिली राह

नीलोफ़र का परिवार मुश्किलों में ज़िंदगी बसर कर रहा था। आलम ये था कि नीलोफ़र को अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने मुश्किल हो चुके थे। वो इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की पढ़ाई कर रही थी। इसके अलावा घर चलाना भी दुश्वार हो रहा था। गांव में कुछ खास कामकाज के अवसर ना होने की वजह से कमाई का ज़रिया भी नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में नीलोफ़र ने जानकारी जुटानी शुरू की। उन्हें मशरूम की खेती के बारे में पता चला। नीलोफ़र को लगा कि इसे वो कर सकती हैं। बस फ़िर क्या था। वो पहुंच गई कृषि विभाग के दफ़्तर। वहां उन्हें काफ़ी सहयोग मिला। 1 हफ़्ते की ट्रेनिंग और मशरूम यूनिट शुरू करने के लिए सब्सिडी दी। 50 हज़ार की मदद के साथ नीलोफ़र ने अपने घर के एक कमरे में मशरूम की यूनिट लगा ली। बहुत कम समय में उनकी मेहनत ने रंग दिखलाया। कृषि विभाग से मिली ट्रेनिंग में नीलोफ़र को ना केवल मशरूम उगाने बल्कि उसकी कटिंग और पैकिंग भी सिखाई गई थी। इसके इस्तेमाल से नीलोफ़र ने मशरूम की कटिंग की और पैक कर उसे सब्ज़ी मंडी तक पहुंचाया। नीलोफ़र को अच्छा रेस्पॉन्स मिला। मशरूम का एक पैकेट 50 रुपये तक बिक जाता है। इससे नीलोफ़र को अच्छी-ख़ासी आमदनी हुई। इसके बाद उन्होंने कृषि विभाग से मशरूम की खेती के लिए और बैग मांगे।

3 साल से जारी है सफ़र

नीलोफ़र पिछले तीन साल से मशरूम उगा रही हैं। कृषि विभाग की मदद से अब वो एक सफल उद्मी बन चुकी हैं। मशरूम से हो रही कमाई ने उनके घर की माली हालत में भी सुधार करने में मदद की है। अब वो ना केवल अपनी पढ़ाई का ख़र्च ख़ुद उठा रही हैं बल्कि परिवार चलाने में भी सहयोग दे रही हैं। नीलोफ़र ने जब ये काम शुरू किया था उसके कुछ ही दिन बाद कोरोना ने दस्तक दे दी थी। लॉकडाउन ने कई कारोबार चौपट कर दिये थे लेकिन नीलोफ़र ने हिम्मत नहीं हारी। उस दौरान भी उन्होंने अपना काम जारी रखा और बाज़ार तक मशरूम पहुंचाए।
नीलोफ़र की इस नई सोच और जज़्बे ने जम्मू-कश्मीर की महिलाओं को बदलाव की एक नई रोशनी से रू-ब-रू कराया है।