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खेत-खलिहान

बीज क्रांति के नायक विजय

एक समय था जब ज़्यादातर घरों में मोटे अनाज का इस्तेमाल किया जाता था। धीरे-धीरे ये अनाज हमारे कथित विकास की रफ्तार की भेंट चढ़ते गए। नए और हाइब्रिड फसलों ने उनकी जगह ले ली। आलम ये हो गया कि अब वो अनाज बचे ही नहीं। लेकिन समय का चक्र बदला और अब वही अनाज जिसे हमने कभी खाना तक छोड़ दिया था, आज सुपरफूड के नाम से पैकेट में बंद कर बेचे जा रहे हैं और हम उन्हें ख़रीद कर खा भी रहे हैं। तब हमने उनका मोल नहीं समझा तभी आज वो अनाज हमें अपना मोल बता रहा है। लेकिन कई ऐसे भी लोग हैं जो बहुत पहले ही इस बात को समझ गए थे। ना केवल समझ गए थे बल्कि उन्होंने इसके लिए काम भी करना शुरू कर दिया था। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी एक ऐसे ही नायक की जिन्होंने बीज बचाओ आंदोलन को जन्म दिया। आज कहानी विजय जड़धारी की।

1986 में बीज बचाओ आंदोलन का आग़ाज़

‘जोते बोए जो ज़मीन

बीज रहें उसी के अधीन’

अपने इन्हीं शब्दों को जीवन का मंत्र बनाने वाले विजय जड़धारी एक ऐसे शख्स हैं जो अपनी मिट्टी, अपने पेड़ और अपने बीज बचाने में 30 से भी अधिक सालों से जुटे हैं। उत्तराखंड में अल्मोड़ा के जड़धार गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्में विजय जड़धारी शुरुआत से ही क्रांतिकारी विचारों के थे। सुंदरलाल बहुगुणा और धूम सिंह नेगी के साथ उन्होंने चिपको आंदोलन और पर्यावरण संरक्षण के लिए ख़ूब काम किया। इससे उनके अंदर प्रकृति और खेती के प्रति एक नई चेतना का जन्म हुआ। जब देश की खेती में बड़े पैमाने पर बदलाव आने लगा, खेती के तरीक़ों से लेकर बीज बदलने लगे तब विजय ने देसी बीज बचाने के लिए आंदोलन छेड़ दिया। वो समझ चुके थे कि स्थानीय फसलों को बचाना कितना ज़रूरी है। वो ये जानते थे कि स्थानीय फसलें ही इलाक़े के पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रख सकती हैं। उन्होंने तब ही अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर स्थानीय फसलों के बीज इकट्ठे करने शुरू कर दिये।

विरोध के बीच करते रहे काम

विजय लोगों को हाइब्रिड फसलों और बाहरी बीजों के प्रति जागरूक भी करते थे। लोगों से अपने खेतों में स्थानीय फसल और स्थानीय बीज ही लगाने की अपील करते थे। कई बार इसके लिए उन्हें लोगों का विरोध झेलना पड़ा। लोगों को लगता था कि हाइब्रिड बीजों से अच्छी पैदावार हो रही है, फ़ायदा हो रहा है फ़िर भला इसका विरोध क्यों। वो इसके दूरगामी दुर्ष्प्रभाव को नहीं देख पा रहे थे। लेकिन विजय लगे रहे। लोगों को समझाते रहे, बीज बचाते रहे।

विजय के पास बीजों का भंडार

विजय की अनवरत मेहनत और जज़्बे का असर ये हुआ कि आज उनके पास उत्तराखंड के मूल अनाज और फसलों के इतने बीज हैं कि आप हैरान रह जाएंगे। विजय के बीज बैंक में केवल राजमा के 220 प्रजातियों के बीज हैं। धान की 320 प्रजातियों और गेहूं की 32 प्रजातियों के बीज उन्होंने संभाल कर रखे हैं। मडुंआ, झिंगोरा, कौणी, रामदाना, भट्ट, लोबिया, ज्वार, मक्का समेत कई फसलों की अलग-अलग किस्मों के बीज विजय के बीज भंडार में आसानी से मिल जाएंगे।

बाराहनाजा’ का सूत्रपात

विजय ने लोगों को बारहनाजा खेती करने का तरीक़ा सिखाया। शाब्दिक तौर पर बाहरनाजा मतलब 12 तरह के अनाज लेकिन इसमें अनाज के अलावा कई तरह की दालें, तिलहन, सब्ज़ी-भाजी भी शामिल हैं। विजय की कोशिश थी कि उत्तराखंड के खेत उन फसलों या अनाजों को उगाए जिसके लिए वो बने हैं। बारहनाजा के कॉन्सैप्ट को समझाने के लिए उन्होंने इसी नाम से एक क़िताब भी लिखी है। इसके साथ ही उन्होंने उत्तराखंड के खान-पान पर भी एक क़िताब लिखी है। वो हमेशा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि विशुद्ध उत्तराखंडी भोजन खाने वाले की प्रतिरोधक क्षमता कभी कमज़ोर नहीं पड़ेगी। वो कई बीमारियों से लड़ने में सक्षम होते हैं।

ज़ीरो बजट खेती के जनक

विजय जड़धारी ने खेती को लेकर कई अनूठे प्रयोग भी किये। धान की फसल कटते ही बिना हल चलाए उन्होंने खेतों में गेहूं बो दिया और उसके ऊपर धान की पराली डाल दी। कुछ दिनों में पराली गल कर खाद में बदल गई और नीचे से गेहूं की फसल उग आई। विजय बताते हैं कि इसमें ना केवल खाद और पानी कम की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि फसल भी अच्छी होती है। ये पूरी तरह से ज़ीरो बजट खेती है।

देश-विदेश में सम्मान

विजय जड़धारी को उनकी इस साधना के लिए कई सम्मान भी हासिल हो चुके हैं। उत्तराखंड के नंदा देवी सम्मान, राजेंद्र रावत जन सरोकार सम्मान, इंदिरा गांधी सम्मान, अवध सम्मान के अलावा ब्रुसेल्स, नेपाल और मलेशिया में भी सम्मान प्राप्त हुए।