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किक स्टार्ट: एक कोशिश बदलाव की

दिव्यांगों का जीवन चुनौतियों से भरा होता है। घर से लेकर बाहर तक उन्हें हर उस चीज़ के लिए संघर्ष करना पड़ता है जो आम लोगों के लिए बेहद आसान होती है। दुनिया भर में दिव्यांगों के लिए सुविधाओं को आसान और उनके हिसाब से बनाने को लेकर लड़ाइयां लड़ी गईं और आज भी लड़ी जा रही हैं। छोटे-छोटे बदलाव के लिए बड़े आंदोलनों की ज़रूरत पड़ रही है। भारत में ही क़रीब 3 करोड़ से ज़्यादा की आबादी किसी ना किसी तरह से दिव्यांग है और उन्हें भी रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अस्पतालों, सरकारी दफ़्तरों, बस-ट्रेन वगैरह में रैंप नहीं होते, दृष्टिबाधितों के लिए ब्रेल में साइन बोर्ड नहीं होते। ऐसे में उनका जीवन संघर्ष और मुश्किल हो जाता है। और जब हमारे समाज से ही कोई आगे बढ़ता है, नया क़दम उठाता है, नई राह दिखाता है तो वो बदलाव बन जाता है। ऐसे ही एक बड़े बदलाव की कोशिश की बैंगलुरु में जब ख़ासतौर पर दिव्यांगों के लिए कैब सर्विस की शुरुआत हुई।

विद्या और श्रीकृष्णा का वेंचर

इस अनूठी सोच के पीछे विद्या रामासुब्बन और श्रीकृष्णा शिवा हैं। दो पिछले 20 साल से भी अधिक समय से दिव्यांगों के लिए काम कर रहे हैं। विद्या की मां भी दिव्यांग हैं। वो व्हीलचेयर का इस्तेमाल करती हैं। जब भी उन्हें कहीं आना-जाना होता था तो विद्या कैब बुलाती थीं। वो अक्सर ये देखा करती थीं कि उनकी मां को कैब में चढ़ने, बैठने और उतरने में काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके बाद उनके मन में दिव्यांगों के लिए स्पेशल गाड़ी का विचार आया। श्रीकृष्णा के साथ मिल कर उन्होंने इस पर काम शुरू कर दिया। साल 2014 में उन्होंने 3 गाड़ियों के साथ किक स्टार्ट कैब सर्विस की शुरुआत कर दी।

स्पेशल लोगों के लिए स्पेशल कैब

किक स्टार्ट कैब की गाड़ियां अलग तरह से डिज़ाइन की जाती हैं। दिव्यांगों को ध्यान में रखते हुए इनकी सीट में बदलाव किये गए हैं। गाड़ी में चढ़ना-उतरना आसान बनाया गया है। गाड़ियां ऐसी बनाई गईं है कि अगर दिव्यांग अकेला भी हो तो उसे चढ़ने उतरने में दिक़्क़त ना हो। इसके अलावा कैब सर्विस के ड्राइवर को भी दिव्यांगों की मदद के लिए ख़ास तौर पर ट्रेनिंग दी गई है। एक विशेष बात ये भी है कि ये कैब सर्विस केवल दिव्यांगों के लिए ही नहीं है। इसका इस्तेमाल वो बुज़ुर्ग भी कर सकते हैं जिन्हें इस तरह की विशेष सुविधाओं की ज़रूरत पड़ती है।

बाज़ार में बढ़ रही है पहुंच

कई देसी-विदेशी कैब कंपनियों के बीच किक-स्टार्ट ने भी अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी है। बैंगलुरु के बाद ये कंपनी अब देश के कई बड़े शहरों में अपना नेटवर्क स्थापित करने की कवायद में जुटी है। फ़ोन नंबर के बाद अब मोबाइल एप से ये हर फ़ोन तक पहुंच बना रही है। किक स्टार्ट दिव्यांगों को पैकेज ट्रिप, ऑफ़िस पिक-ड्रॉप, एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन पहुंचाना या वहां से घर तक छोड़ने के अलावा आउटस्टेशन ट्रिप्स भी मुहैया करवा रही है। बैंगलुरु में मनीपाल अस्पताल के अलावा कई और कंपनियों में किक स्टार्ट के कॉरपोरेट क्लाइंट तैयार हो चुके हैं। अब सामान्य कैब ड्राइवर भी किक स्टार्ट से जुड़ने लगे हैं। इसके लिए कंपनी ही गाड़ी में आवश्यक बदलाव करवाती है। किक स्टार्ट विद्या और शिवा का ऐसा स्टार्ट अप है जो सिर्फ़ पैसे बनाने और कमाने के लिए नहीं शुरू किया गया है। ये दिव्यांगों और बुज़ुर्गों को बेहतर सुविधा देने की एक बड़ी कोशिश है।