Home » अपने जज़्बे से बन गई मिसाल
खेत-खलिहान

अपने जज़्बे से बन गई मिसाल

भारत सरकार ने जब से मिलेट्स को अपनाने की बात की है तब से हर तरफ़ ज्वार, बाजरा, कोदो, कुट्टू जैसे अनाज की ख़ूब चर्चा हो रही है। हर तरफ़ इसके फ़ायदे गिनाये जा रहे हैं लेकिन ये भी कटु सत्य है कि इन अनाजों को हमने अपनी खाने की थाली से निकाल दिया था। ज़्यादातर लोग इन अनाजों को खाना नहीं चाहते थे और कभी खाते भी थे तो शौकिया तौर पर। यहां तक कि इन अनाजों पर ग़रीबों-आदिवासियों का खाना होने का ठप्पा लगा दिया गया था। ऐसा लग रहा था कि धीरे-धीरे ये अनाज ख़त्म हो जाएंगे लेकिन कई ऐसे भी जुझारू लोग हैं जिन्होंने इन अनाजों के संरक्षण और संवर्धन के लिए बिना किसी प्रेरणा, बिना किसी मदद के, ना केवल क़दम उठाए बल्कि कुछ ऐसा कर दिखाया जिसे दुनिया आज सलाम कर रही है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट भी आज एक ऐसी ही शख़्सियत की कहानी लेकर आया है जो मिसाल बन चुकी हैं। उस शख़्सियत का नाम है लहरी बाई।

मिलेट्स की ब्रांड एंबेसेडर लहरी बाई

वो पढ़ी-लिखी नहीं है। कभी स्कूल नहीं गई। कभी शहर नहीं गई। ना टीवी-इंटरनेट से कभी वास्ता पड़ा। ना किसी वैज्ञानिक और विशेषज्ञ से कोई राब्ता रहा लेकिन मध्य प्रदेश के डिंडोरी में जंगल के बीच बसे सिलपिड़ी गांव में रहने वाली बैगा आदिवासी लहरी बाई ने ये पूरी दुनिया को बता और सिखा दिया कि इंसान को प्रकृति से जुड़ा रहना कितना ज़रूरी है। 26 साल की लहरी बाई मिलेट्स की ब्रांड एंबेसेडर बनाई गई हैं। आज सिर्फ़ मध्य प्रदेश ही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उनके नाम की गूंज है। बड़े-बड़े अधिकारी उनसे मिलने आ रहे हैं। सरकारी कार्यक्रमों में उन्हें बुलाया जा रहा है। उनकी तस्वीरों के साथ बड़े-बड़े पोस्टर बन रहे हैं और ये सब हुआ है उनके एक अनोखे बीज बैंक की वजह से।

लहरी का बीज बैंक

लहरी का गांव सिलपिड़ी डिंडोरी ज़िला मुख्यालय से क़रीब 60 किलोमीटर दूर बसा है। यहीं वो अपने दो कमरे के घर में रहती हैं। एक कमरे में उनकी रसोई और रहने का इंतजाम है जिसमें वो अपने मां-बाप के साथ रहती हैं तो दूसरे में उन्होंने बीज बैंक बनाया हुआ है। मिट्टी की कई छोटी-बड़ी कोठियों में वो बीजों को सहेज कर रखती है। कई फसलों को वो रस्सी से बांध कर टांग देती हैं। कई फसलों के बीच को वो सूप और टोकरियों में रखती हैं। उनके इस बीज बैंक में क़रीब 30 से ज़्यादा फसलों और उनकी प्रजाति के बीज हैं। ऐसे-ऐसे बीज जो बाज़ार ही नहीं, कई कृषि अनुसंधान केंद्रों में भी मौजूद नहीं हैं।

एक दशक से ज़्यादा की मेहनत

लहरी का ये बीज बैंक ऐसे नहीं बना है। ये उसकी 10 भी ज़्यादा साल की मेहनत का फल है। वो पिछले 10 से भी ज़्यादा सालों से अपने ही नहीं, अपने आसपास के गांवों की खाक छान रही है। वो गांव-गांव जाकर इन मोटे अनाज के बीज इकट्ठा करती रही। अनाज की अलग-अलग किस्मों के बीज को छांट कर अलग किया और उन्हें अपने बीज बैंक में सहेजती गईं। इस दौरान उन्हें ना केवल बीज जमा करने में मशक्कत करनी पड़ी बल्कि लोगों के ताने और फटकार भी झेलनी पड़ी। लोग तो उन्हें पागल करार देने पर तुले थे। जिस मध्य प्रदेश में एक समय मोटे अनाज की खेती के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया गया था, आज के समय में जब मोटा अनाज आम लोगों की थाली से ग़ायब हो चुका है और दिन-ब-दिन मोटे अनाज की खेती कम होती जा रही हो, उस वक़्त कोई गांव-गांव भटक कर इन अनाजों के बीज इकट्ठा करे तो लोगों के लिए हैरानी की बात तो होगी ही। लहरी के लिए इन बीजों को सुरक्षित रखना भी चुनौती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल किया। बीजों को अच्छे से सुखा कर उन्हें मिट्टी की कोठियों में रखा। समय-समय पर उन्हें धूप दिखाया। आज उनके बीज बैंक में ज्वार, बाजरा, कोदो, सांवा, रागी, कुटकी, कुट्टू समेत क़रीब 30 फसलों के बीज हैं। लहरी को इस काम की प्रेरणा अपने बड़े-बुजुर्गों से मिली। उनके पुरखे पहले से बीजों को सहेजने और फ़िर उन्हीं बीजों से खेती करने का काम किया करते थे।

मोटे अनाज के प्रति जागरूकता

पहले तो लोगों ने लहरी का मज़ाक उड़ाया लेकिन लहरी की प्रतिबद्धता को देखकर उनके ज़ुबान पर भी ताले लग गये। जब लहरी ने अपना बीज बैंक तैयार कर लिया तो वो वापस उन्हीं गांवों में जाने लगी और लोगों को मोटे अनाज के फ़ायदे के बारे में जागरूक करने लगी। वो बताने लगी कि मिलेट्स में आने वाले अनाज ना केवल इंसानों के लिए बल्कि प्रकृति के लिए भी फ़ायदेमंद हैं। इतना ही नहीं पशुओं के लिए भी चारे के तौर पर इनका इस्तेमाल लाभदायक है। लहरी की ये मुहिम रंग लाने लगी। लोग एक बार फ़िर मोटे अनाज की तरफ़ रुख़ करने लगे। लहरी अपने साथ इन अनाज के बीज भी ले जाती है और किसानों को मुफ़्त में बांटती है। फसल तैयार हो जाने पर वो उस फसल से तैयार बीजों को वापस ले लेती है।

लहरी के नाम की धूम

लहरी के इन प्रयासों का जिक्र धीरे-धीरे बढ़ने लगा। बात ज़िलाधिकारी तक पहुंची तो वो हैरत में पड़ गये। एक बार वो अपने अमले के साथ लहरी के घर पहुंच गये। उसका बीज बैंक देखकर उन्होंने लहरी की ख़ूब तारीफ़ की। इसके बाद उन्होंने कई कार्यक्रमों में लहरी को बुलाया। अब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया को मिलेट्स की तरफ़ लौटने का संदेश दिया है, जाहिर तौर पर लहरी के बीज बैंक और बीज बांटने के अभियान की चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने लहरी को मिलेट्स की ब्रांड एंबेसेडर घोषित किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लहरी के काम की सराहना की है।

लहरी बाई की ये मेहनत रंग लाई है। उनकी सोच और पारंपरिक ज्ञान ने उन्हें उस मक़ाम पर पहुंचा दिया जिसकी लोग कल्पना तक नहीं कर सकते। लहरी चाहती है कि सरकार अब उन्हें ज़मीन का एक टुकड़ा दे ताकि वो अपने बीज बैंक को ना केवल आगे बढ़ाये बल्कि उन बीजों से ख़ुद भी खेती कर सके।

मिलेट्स में शामिल अनाज सुपरफूड माने जाते हैं। ये बेहतर स्वास्थ्य के लिए रामबाण तो हैं ही, दुनिया में बढ़ते अनाज संकट का भी समाधान हैं। उम्मीद है लहरी का ये बीज बैंक इस समाधान को और आसान बनाने में मदद करेगा और दूसरों को भी प्रेरित करेगा।