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धरती से

तितली को जीने दो

एक बार याद कीजिए तितली को। सुन्दर सी, प्यारी सी, रंग-बिरंगी, फूलों पर मंडराने वाली तितलियों को। अब ज़रा सोचिए कि ये दृश्य आपने कब आख़िरी बार देखा था। दिमाग पर ज़ोर डालने पर शायद आपको याद आ जाए। लेकिन ऐसा क्यों है कि हमारे आसपास यूं ही घूमनेवाली ये तितलियां अब इतनी कम हो गयी चुकी हैं ? क्यों अब उन तितलियों को हमें अलग से याद करना पड़ रहा है ? क्यों उन्हें बचाने के लिए लोगों को खास तौर पर काम करना पड़ रहा है ? इसका जवाब भी हम ही हैं। प्रकृति ने तो इस धरती को हर जीव-जंतुओं के लिए बनाया था लेकिन हम इंसान इस पर कब्ज़ा करने में जुटे हुए हैं। और यही वजह है कि ना सिर्फ़ तितलियां बल्कि बहुत से जीव-जंतु अब विलुप्त होते जा रहे हैं। हमारी आज की कहानी एक ऐसी ही युवा की है पिछले कई सालों से इन ख़ूबसूरत तितलियों को उनका जहां, उनकी ज़िंदगी लौटाने की कोशिश कर रही हैं। आज हम आपको मिलवाते हैं प्राची सिंह से।

प्राची का तितली प्रेम

प्राची सिंह हरियाणा के फरीदाबाद में रहती हैं और पेशे से सीए हैं। एमएनसी में काम करने वाली प्राची लेपिडोप्टरिस्ट हैं। लेपिडोप्टरिस्ट मतलब कीट-पतंगों, तितलियों के बारे में पढ़ने वाला। प्राची ने अपने घर के बगीचे में दस अलग अलग प्रजातियों की तितलियों को पाल रखा हैं। तितलियों के लिए ख़ास तौर पर प्राची ऐसे पेड़-पौधे लगाती हैं जिनपर वो अपना जीवनचक्र शुरू कर सकें, पल सकें। प्राची का तितली प्रेम बचपन से ही जाग गया था। तितलियों के जीवन चक्र की पढ़ाई ने उनकी तितलियों में दिलचस्पी जगा दी। वो तितलियों पर ध्यान देने लगीं, पेड़-पौधौं में लार्वा की तलाश करने लगीं और जब पहला लार्वा मिला तो वो ख़ुशी से फूली ना समाईं। उसे पाला, उसकी देख-रेख की। लार्वा से प्यूपा बना और फ़िर एक दिन सुंदर सी तितली उसमें से निकल अपने पंख फैलाती हुई उड़ने लगी। प्राची के लिए ये किसी सपने के साकार होने जैसा था। बस फ़िर क्या था। इसके बाद प्राची ने इन तितलियों से दोस्ती गांठ लीं।

पढ़ाई के साथ बढ़ती गई दिलचस्पी

प्राची का तितलियों से प्यार आगे भी बना रहा। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने तितलियों का भी अध्ययन जारी रखा। चार्टड अकाउंटेंट की पढ़ाई के साथ ही उन्होंने बीएनएचएस यानी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से कोर्स भी किया है। दस बारह साल की लगातार मेहनत ने प्राची को तितलियों की अच्छी जानकार बना दिया। वो फ़रीदाबाद में अपने घर के दस से अधिक प्रजातियों की तितलियां पाल रही हैं। अब तक उन्होंने 500 से अधिक तितलियों को पाला है। उनके इसी तितली प्रेम ने साल 2020 में उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज करवा दिया। प्राची देश की पहली महिला है जिन्होंने तितलियों के पालन-पोषण करने के लिए ये उपलब्धि हासिल की है।

अपने लगाव को बनाया मुहिम

प्राची बताती हैं कि जब उन्होंने तितलियों को पालना शुरू किया तो उस वक़्त जानकारी जुटाना मुश्किल था। ना इतने फ़ोन थे, ना इंटरनेट। कुछ पता करने के लिए क़िताबों और जानकारों का सहारा लेना पड़ता था। उस समय तितलियों के अंडों को ढूंढने की कोशिश में वो पेड़ों के तनों में कीड़ों को ढूंढती थी। धीरे-धीरे उन्हें ये समझ आया कि तितलियों की अलग-अलग प्रजातियां अलग-अलग पेड़ों पर मिलती हैं। सभी तितलियां एक ही पत्ते नहीं खाती।

प्राची ना सिर्फ़ अपने तितली प्रेम को बल्कि तितलियों के बारे में अपने ज्ञान को बांध कर नहीं रखतीं। वो तो इसे लोगों तक फैलाने में जुटी हैं। प्राची अब लोगों को, ख़ासतौर से बच्चों को अपने यहां बुलाती हैं ताकि वो तितलियों को, उनके अंडों को, जिन पेड़-पौधों पर वो अंडे देते हैं, उन्हें देख सकें, समझ सकें। वो बच्चों को प्रकृति को क़रीब से देखने का मौक़ा दे रही हैं और चाहती हैं कि बच्चे प्रकृति से जुड़ाव महसूस कर सकें। वो कई कार्यक्रमों में लोगों को तितलियों और उनके पर्यावास के बारे में जानकारी भी देती हैं। वो बताती हैं कि तितलियां पालने के लिए ज़रूरी नहीं कि आपके पास बड़ा बागीचा ही हो। तितलियां तो बालकनी में भी पाली जा सकती हैं, बशर्ते बेल, गुड़हल, नींबू, अशोक और गुलमोहर जैसे कुछ पेड़-पौधें वहां लगें हों जिन पर तितलियां अंडे देतीं हैं। तितलियों को पालने के लिए इस बात का भी ख़्याल रखना पड़ता है कि आप पौधों पर दवाओं का छिड़काव ना करें। बच्चों को तितलियों से जोड़ने के लिए प्राची ने एक क़िताब भी लिखी है।

 प्रकृति का कर्ज़ चुकाती प्राची

प्राची की तरह हम सभी को ये समझने की ज़रूरत है कि तितली सिर्फ़ दिखने में ही सुन्दर नहीं होती, वो हमारे पर्यावरण के लिए भी बहुत ज़रूरी होती है। तितलियां हमें और आपकी ज़िंदगी के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये नन्हे से जीव खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिकीय तंत्र को संभाले रखने का भी काम करते हैं। यही वजह है कि प्राची चाहती है कि लोग अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएं और तितलियों को पलने का मौक़ा दें।

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट प्राची की इस मुहिम का समर्थन करता है और आप लोगों से अपील करता है कि आप भी इस नन्हें और बेहद ख़ूबसूरत जीव को बचाने में अपना योगदान दें।