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बंदे में है दम

प्रकृति से जुड़कर काम करने वाले मोहित

पलायन एक ऐसा अभिशाप है जिसका दर्द हर गांव-हर कस्बा और हर छोटा शहर झेल रहा है। अच्छी पढ़ाई के लिए, नौकरी की तलाश में, अच्छी सुविधाओं की तलाश में युवा मजबूर होकर अपना घर अपना गांव छोड़ कर शहर चले जाते हैं। लाख सुविधाओं के बाद भी ज़्यादातर युवाओं का मन अपने गांव की मिट्टी में ही बसा होता है। वो मिट्टी उन्हें बार-बार आवाज़ देती है, पुकारती है। कई इस पुकार को सुन कर अपने गांव, अपने घर लौट आते हैं और फ़िर करते हैं एक ऐसी शुरुआत जो ना केवल उनकी बल्कि पूरे गांव की तक़दीर बदलने लगती है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में हम ऐसी ही शुरुआत करने वाली शख़्सियत की कहानी लेकर आए हैं। उस शख़्सियत का नाम है मोहित आनंद पाठक।

मोहित का काशी से काशी तक का सफ़र

मूल रूप से किसान परिवार में जन्मे मोहित आनंद पाठक की शुरुआती पढ़ाई वाराणसी में ही हुई। वाराणसी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई के बाद मोहित दिल्ली चले गए। एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी ख़ासी नौकरी लग गई। सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन मोहित का मन कुछ और चाह रहा था। उन्हें हमेशा अपने गांव, अपने इलाक़े में रह कर काम करने की इच्छा होती थी। अपने बड़े भाई रोहित आनंद पाठक से बात कर उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा फ़ैसला लिया। साल 2019 में उन्होंने नौकरी को अलविदा कह दिया और एक नए सफ़र पर निकल पड़े। उनकी मंज़िल थी वाराणसी में बसा उनका गांव नारायणपुर।

मधुमक्खी पालन से शुरुआत

मोहित के सामने सबसे बड़ा सवाल ये था कि वो घर लौट कर ऐसा कौन सा काम करें जिससे आमदनी भी हो और इलाक़े में कुछ सकारात्मक काम भी हो सके। दिल्ली में रहते हुए ही उन्होंने बी-किपिंग यानी मधुमक्खी पालन के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। उन्हें इस काम में उम्मीद नज़र आई। नौकरी के दौरान ही मोहित ने इस पर काम शुरू कर दिया था। दिल्ली के गांधी दर्शन से उन्होंने मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली। इसके बाद अपने काम की पूरी प्लानिंग की। अपने सेटअप को डिज़ाइन किया। इसी दौरान उन्हें ये भी पता चला कि वाराणसी और आसपास के इलाक़े मधुमक्खी पालन में काफ़ी आगे बढ़ चुके हैं ऐसे में उनका उत्साह और बढ़ गया।

चुनौतियों से सामना

मोहित ने जब ये फ़ैसला किया तब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में आ चुकी थी। ऐसे में उनके सामने दोहरी चुनौती आ खड़ी हुई। नए काम की शुरुआत और कोरोना की दहशत से निपटना आसान नहीं था। दूसरी तरफ़ परिवार भी था जिसे शुरुआत में लगा कि भला क्यों अच्छी ख़ासी नौकरी छोड़ कर गांव में लौट आए। लेकिन मोहित और उनके बड़े भाई रोहित अपने फ़ैसले से टस से मस नहीं हुए। पचास बॉक्स के साथ अपने काम की शुरुआत कर डाली। जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि उनका गांव लौटने का फ़ैसला ग़लत नहीं है। दोनों भाइयों की मेहनत रंग लाने लगी तो परिवार की भी सोच बदल गई। मधुमक्खी पालन से तैयार हुए शहद में उनकी मेहनत भी घुली थी, जो उस शहद की मिठास और बढ़ा रही थी।

कंपनी की स्थापना

इस काम को आगे बढ़ाने में दोनों भाइयों की पढ़ाई और काम का अनुभव बेहद मददगार साबित हुआ। मधुमक्खी पालन के काम को विस्तार देते हुए उन्होंने अग्रिकाश नाम की कंपनी का गठन किया। अपने शहद की उन्होंने ब्रांडिंग की। नाम दिया उदेस। इस कंपनी के ज़रिए पाठक भाइयों ने शहद उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक का पूरा काम शुरू कर दिया। बाज़ार ने उनके प्रोडक्ट को शानदार रिस्पॉन्स दिया।

गांव के लोगों को साथ जोड़ा

मोहित शुरुआत से ही गांव के लिए काम करना चाहते थे। ऐसे में जब उन्होंने शहद का काम शुरू किया तो गांव के लोगों को भी अपने साथ जोड़ा। बी-किपिंग, शहद निकालना, पैकिंग और सप्लाई की चेन में गांव की कई महिलाओं और पुरुषों को रोज़गार मिला। इतना ही नहीं मोहित ने गांव के लोगों को भी मधुमक्खी पालन की बाकायदा पूरी ट्रेनिंग दी।

फल-सब्ज़ी का कारोबार

मोहित और रोहित पाठक ने मधुमक्खी पालन के साथ-साथ एक नए काम की शुरुआत की। ये काम था फल और सब्जी का कारोबार। दोनों भाइयों ने स्थानीय किसानों और फल उत्पादकों से संपर्क किया। उनकी फसल को अच्छे दाम पर ख़रीदा और फ़िर उसे वाराणसी ही नहीं दिल्ली तक सप्लाई करना शुरू किया। उनके इस काम से स्थानीय किसानों को उनकी फसल का अच्छा दाम मिलने लगा, लोगों को ताज़ी सब्ज़ियां और फल मिलने लगे और मोहित और रोहित पाठक को मुनाफ़ा।

बकरी पालन का नया काम

अग्रिकाश को और विस्तार देते हुए अब दोनों भाइयों ने बकरी पालन का काम शुरू किया है। उनका कहना है कि बकरी पालन हर तरह से फ़ायदेमंद है। इसमें कम लागत, कम देखरेख की ज़रूरत पड़ती है। इसके लिए भी मोहित ने मथुरा के केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपने रमेदार बकरी फॉर्म में वो चुनिंदा किस्म की बकरियां पाल रहे हैं।

रोहित और मोहित पाठक ने अपने काम को प्रकृति से जोड़ कर रखा है। उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि वो अपने काम में प्रकृति से कुछ ले नहीं रहे बल्कि उसे लौटा ही रहे हैं। रोहित और मोहित पाठक ने अपने जोश, अपने जज़्बे और अपनी मेहनत से ना केवल ख़ुद के लिए रोज़गार और कारोबार का अच्छा साधन तैयार किया बल्कि पूरे गांव में चेतना की नई लहर पैदा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दोनों भाइयों के इस काम की सराहना कर चुके हैं। दोनों भाइयों को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की शुभकामनाएं