Home » समाज में नया सवेरा: शुभम
Latest Story स्टार्ट अप

समाज में नया सवेरा: शुभम

कहते हैं कि आप अपनी लाइफ़ की कितनी भी प्लानिंग कर लें, होगा वही जो लाइफ़ ने आपके लिए प्लान किया हुआ है। ज़िंदगी कब क्या मोड़ ले ये कोई नहीं जानता। बिहार के रहने वाले शुभम कुमार के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। आज शुभम बिहार में बदलाव की नई बयार लाने में जुटे हुए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और पर्यावरण के साथ-साथ कई क्षेत्रों में परिवर्तन के लिए अभियान चला रहे हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी शुभम की इसी नई शुरुआत की।

हादसे ने बदली ज़िंदगी-चमत्कार से नई शुरुआत

शुभम कुमार ने बेंगलुरु से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और वहीं एक कंपनी में नौकरी करने लगे। सबकुछ जम गया था। अच्छी नौकरी, अच्छी सैलेरी और आगे बढ़ने का पूरा मौक़ा। शुभम के सामने पूरी ज़िंदगी थी जिसे वो अपनी मेहनत के दम पर ख़ुशनुमा बनाना चाहते थे। लेकिन जैसे उनकी ख़ुशियों को किसी की नज़र लग गई। पत्नी एक हादसे का शिकार हो गईं। जान तो बच गई लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि अब वो कभी मां नहीं बन पाएंगी। ये बात पूरे परिवार के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। शुभम तो नौकरी पर वापस चले गए लेकिन उनकी पत्नी के दिल-ओ-दिमाग से ये बातें निकल नहीं पा रही थी। आख़िरकार शुभम ने पटना लौटने का फ़ैसला किया। वो हमेशा इस कोशिश में लगे रहते कि उनकी पत्नी को अच्छा महसूस हो। इसी दौरान उन्होंने हर रविवार को ज़रूरतमंदों को खाना बांटना शुरू किया ताकि उनकी पत्नी भी इसमें शामिल हों और उनका ध्यान पुरानी बातों से हटे। दोनों पति-पत्नी के साथ इस काम में और भी कई लोग जुड़ गए। इसी बीच पता चला कि उनकी पत्नी प्रेगनेंट है। ये बात शुभम और घरवालों के लिए वरदान की तरह थी। तीन साल पहले उनके घर बेटे का जन्म हुआ और तभी से शुभम ने समाज के लिए काम करने का फ़ैसला कर लिया।

शिक्षा के क्षेत्र में कारगर क़दम

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके शुभम शिक्षा का महत्व जानते हैं। वो ये भी जानते हैं कि आज के समय में केवल पारंपरिक शिक्षा पद्धति से छात्रों का विकास संभव नहीं है। इसलिए वो सरकारी स्कूलों से जुड़ कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शुभम की संस्था बीइंग हेल्पर फाउंडेशन से जुड़े 600 से अधिक कार्यकर्ता, 35 क्लासिफाइड टीचर, 5 डिजिटल क्लासरूम की मदद से हर साल 500 से अधिक बच्चों और युवाओं को कंप्यूटर की शिक्षा दे रहे हैं। बिहार के क़रीब 135 सरकारी स्कूलों में फाउंडेशन की क्लास चल रही है। संस्था बिहार में मिशन डिजिटल एजुकेशन यात्रा भी चला रही है। ये यात्रा बिहार के 534 ब्लॉक में जाकर लोगों को डिजिटल शिक्षा के प्रति जागरूक कर रही है। मक़सद ये है कि बिहार बोर्ड के पाठ्यक्रम में क्लास 6 से ही कंप्यूटर शिक्षा को अर्निवार्य रूप से जोड़ा जाए। 22 मार्च को पटना से शुरू हुई ये यात्रा 23 ज़िलों को पार कर चुकी है। हर ब्लॉक हर पंचायत में जाकर संस्था के लोग जनप्रतिनिधियों से मुलाक़ात कर रहे हैं, उन्हें अपने मिशन की जानकारी देने के साथ-साथ कंप्यूटर शिक्षा के लिए हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं जिसे सरकार को सौंपा जाएगा।

सेहत के लिए संघर्ष

बीइंग हेल्पर फाउंडेशन स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काम कर रही है। बेघर और ग़रीब लोगों का इलाज, किसी हादसे का शिकार होकर अपने हाथ-पैर गंवाने वालों को कृत्रिम अंग मुहैया कराना, एसिड अटैक बच्चियों-महिलाओं का इलाज कराने जैसे काम ये संस्था लगातार कर रही है। इसके साथ ही हर साल कम से कम 1 हज़ार यूनिट रक्तदान किया जाता है। ये संस्था बिहार के 6 ज़िलों में माहवारी से संबंधित जागरूकता अभियान चला रही है।

रोज़गार में मदद

ये संस्था उन लोगों को रोज़गार के संसाधन भी मुहैया करवा रही है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं। सब्ज़ी और फल के ठेले, चाय की दुकान, महिलाओं को सिलाई मशीन देकर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उनका घर-बार ठीक से चल सके।

कोरोना काल की लड़ाई

कोरोना काल में ये संस्था कई ज़रूरतमंदों के लिए देवदूत बन गई। ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाओं के साथ-साथ रोज़ाना सैकड़ों ग़रीबों को राशन दिया गया। इनमें 438 तो ऐसे लोग थे जिन्हें अगर समय पर मदद नहीं मिलती तो उनकी जान भी जा सकती थी। कोरोना काल में किये गए कामों की वजह से संस्था को कई सम्मान भी हासिल हुए।

हर ज़रूरतमंद तक मदद पहुंचाने का संकल्प

ये संस्था समाज के हर उस शख़्स की मदद करने की कोशिश कर रही है जो ज़रूरतमंद है। संस्था के लोग शादी-पार्टियों में बचे खाने को इकट्ठा कर ग़रीबों तक पहुंचाती है। इससे ना तो अन्न की बर्बादी होती है और ना ही कोई ग़रीब भूखे पेट सोता है। संस्था की तरफ़ से रोज़ाना कहीं ना कहीं ग़रीबों को खाना दिया ही जाता है। किसी ग़रीब परिवार के घर शादी हो या फ़िर अंतिम संस्कार, ये संस्था आगे बढ़ कर ऐसे लोगों की मदद करती है। इतना ही नहीं संस्था के लोग बीच-बीच में नदियों की सफ़ाई और पेड़-पौधों के संरक्षण के काम भी करते हैं। फिलहाल ये संस्था बिहार के 6 ज़िलों में काम कर रही है। हमें उम्मीद है कि शुभम की बीइंग हेल्पर फाउंडेशन समाज में बदलाव की एक बड़ी लकीर खींचेगी जो हर किसी के लिए प्रेरणा का ज़रिया बनेगी।