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बंदे में है दम

बदलाव की ओर पूनम का क़दम

अपने घर-परिवार को संभालने और संवारने वाली महिलाएं कई बार ज़िंदगी के कुछ पड़ावों पर बिल्कुल अकेली हो जाती हैं। तब अक्सर उनके दिल-ओ-दिमाग में नकारात्मक भावनाएं घर कर जाती हैं लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो इस अंधेरे में भी नई रोशनी और नया रास्ता खोज निकालते हैं। वो रास्ता जो ना केवल उनके जीवन में उजियारा भर देता है बल्कि और भी कई लोगों को नई राह दिखाता है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी ऐसी ही शख़्सियत की जिसने अपनी एक नई शुरुआत से बदलाव का बड़ा संदेश दिया है।

जब महक उठे मंदिर में चढ़े फूल

ये कहानी है गुड़गांव की रहने वाली पूनम सहरावत की। एक संपन्न कारोबारी परिवार से जुड़ी पूनम एक ऐसे काम में जुटी हैं जो ना केवल पर्यावरण संतुलन में मदद कर रहा है बल्कि कई लोगों को रोज़गार भी दे रहा है। पूनम मंदिरों में चढ़े फूलों से कई तरह के प्रोडक्ट बना रही हैं। आज वो एक गृहणी से सफल कारोबारी और मोटिवेश्नल स्पीकर बन चुकी हैं। कई महिलाओं की ज़िंदगी को नया आयाम दे रही हैं।

लेकिन ऐसा नहीं है कि पूनम शुरुआत से कुछ इसी तरह का काम कर रही थीं। केवल 3 साल पहले की बात है। पूनम का परिवार दिल्ली से गुड़गांव आकर बसा था। इसी दौरान उनके बच्चे पढ़ाई के सिलसिले में हॉस्टल चले गए। पति कारोबार में व्यस्त रहते थे। बच्चों के हॉस्टल चले जाने की वजह से पूनम के पास बहुत सारा समय खाली रहता था। दिन में अब उनके पास कोई काम नहीं रहता था। धीरे-धीरे ये स्थिति उन्हें खलने लगी। ये खालीपन उन्हें बेचैन करने लगा। इस बेचैनी को दूर करने के लिए वो मंदिर जाने लगीं। वो घंटों मंदिर में बैठती, पूजा करतीं और फ़िर घर चली आतीं। इसी मंदिर से उनकी नई ज़िंदगी की शुरुआत हुई। दरअसल एक दिन पूजा के दौरान उन्होंने भगवान पर जब फूल चढ़ाया तो पुजारी ने फ़ौरन उन फूलों को उठाकर पास पड़े कचरे के डब्बे में डाल दिया। पूनम को अपने चढ़ाए फूलों को यूं कचरे मे जाता देख बहुत दुख हुआ और यहीं से उन्हें मंदिर में चढ़ाए गए फूलों का सदुपयोग करने का आइडिया आया।

फूलों से बने प्रोडक्ट

पूनम आज अपनी कंपनी आरूही इंटरप्राइजेज़ चला रही हैं। इसमें वो फूलों से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बनाती हैं। धूप, दीये, भगवान की छोटी प्रतिमाएं इन प्रोडक्ट्स में सबसे ख़ास है। लेकिन तीन साल पहले जब पूनम ने इसकी शुरुआत की थी तो उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी। मंदिर में आए फूलों से प्रोडक्ट बनाने की सोच को साकार करने के लिए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली। ये जानने की कोशिश की कि फूलों से किस तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं। इसी दौरान उन्हें कुछ लोगों के बारे में पता चला कि वो फूलों का कुछ ऐसा ही इस्तेमाल कर रहे हैं। पूनम ने ऐसे कुछ लोगों से संपर्क साधा लेकिन उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा। इसी बीच उन्हें गोबर से चीज़ें बनाने वालों की जानकारी मिली। पूनम ने उनमें से एक से बात की तो उन्हें काफ़ी मदद मिली। उस शख्स ने बताया कि जो चीज़ें गोबर से बनाई जा रही हैं वो फूलों से भी बन सकती हैं। इसके बाद पूनम ने फूलों से प्रोडक्ट बनाने की ठान ली। पति ने उनका हौसला बढ़ाया तो पूनम में नए उत्साह का संचार हुआ। इंटरनेट से जानकारी हासिल कर पूनम अपने मिशन में जुट गईं। इसमें उनकी एक दोस्त पिंकी यादव भी साथ जुड़ गईं। दोनों ने शहर के कई मंदिरों में जाकर वहां चढ़ाए जाने वाले फूलों को लेने की बात की। शुरुआत में पूनम और पिंकी रोज़ सुबह मंदिरों में जाकर वहां से बोरे में फूल भरती और अपनी गाड़ी में लाद कर उन्हें लाती। पूनम की पहचान के एक शख़्स ने भी मदद के तौर पर अपनी एक जगह उन्हें काम के लिए दे दी। हालांकि अनुभव की कमी की वजह से पहली बार उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने बारिश के मौसम में काम शुरू किया। अंदाज़ा नहीं रहा और सुखाए गए सारे फूल बारिश में गीले हो कर ख़राब हो गए।

वो कहते हैं ना कि गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले। पूनम भी कुछ ऐसी ही हैं। पहली बार जब फूल ख़राब हो गए तो उन्हें बुरा तो बहुत लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने आस-पास की महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और फ़िर से शुरुआत की।

फूलों से बनी धूपबत्ती

इस बार काम अच्छा रहा। फूल अच्छी तरह से सूखाए गए। उनका पाउडर बनाया गया और फ़िर बाइंडिंग एलिमेंट के साथ धूपबत्ती तैयार की गई। पूनम ने अपने इस वेंचर का नाम आरुषि इंटरप्राइज़ेज़ रखा। जब उनका पहला प्रोडक्ट धूपबत्ती तैयार हो गया तो वो उसे लेकर उन मंदिरों में गईं जहां से वो फूल लाया करती थीं। इन धूपबत्तियों को उन्होंने मंदिर के पुजारियों को दिया। इतनी अच्छी धूपबत्ती देख पुजारी भी ख़ुश हो गए। उन्हें भी लगा कि मंदिर में चढ़ाए गए फूलों का सही उपयोग ऐसे ही किया जा सकता है। पहले पूनम को मंदिर से फूलों में प्लास्टिक, अगरबत्ती के पैकेट और दूसरा कचरा भी मिलता था। लेकिन जब उन्होंने पुजारियों को धूपबत्ती दी तो इस बात का आश्वासन भी मिला कि अब उन्हें फूल में कचरा नहीं मिलेगा। ये भी बड़ा बदलाव था। अभी गुड़गांव के 12 बड़े मंदिरों से रोज़ाना सुबह फूल पूनम के प्लांट में पहुंच रहे हैं।

होम डिलिवरी से लेकर ऑनलाइन बिक्री तक

पूनम ने ना सिर्फ़ इन फूलों से धूपबत्ती बनाई बल्कि इनसें दीये, गणेश जी की छोटी प्रतिमाएं और कई तरह के सजावटी सामान बनाने शुरू कर दिये। पहले तो उन्होंने इसे अपने जानकारों को बेचना शुरू किया। धीरे-धीरे अब उनके प्रोडक्ट्स ऑनलाइन वेबसाइट्स पर भी बिक रहे हैं। ख़ास बात ये है कि उन्होंने अपने प्रोडक्ट को बनाने के लिए मशीनों का नहीं हाथों का इस्तेमाल किया। इससे कई महिलाओं को रोज़गार भी मिला। कोरोना काल के दौरान उन्हें भी थोड़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा लेकिन पूनम ने सबकुछ अच्छे से संभाल लिया। उनके प्रोडक्ट्स दिल्ली हाट, सूरजकुंड मेला, सरस मेले, हुनर हाट, ट्रेड फेयर, पूसा ग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी समेत कई जगहों पर लगाए जा रहे हैं। उनकी पहली प्रदर्शनी दिल्ली हाट में ही हुई थी।

500 महिलाओं को दी ट्रेनिंग

पूनम का मक़सद कभी भी अपने काम से पैसा कमाना नहीं रहा। उन्होंने ये काम अपनी संतुष्टि के लिए किया था जिसे अब उन्होंने एक मिशन बना लिया। उन्हें लगा कि मंदिर के फूलों से सिर्फ़ प्रोडक्ट बनाने से काम नहीं चलेगा, इसे बड़े स्तर पर फैलाना होगा। अब उन्होंने फूलों से धूपबत्ती और दूसरे सामान बनाने की बाक़ायदा ट्रेनिंग शुरू कर दी। अपनी वेबसाइट के ज़रिए उन्होंने ऑनलाइन सिखाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग उन्हें जानने लगे। पहली बार गुड़गांव के रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट ने उन्हें महिलाओं को सिखाने के लिए बुलाया। इसके बाद तो ये सिलसिला चल पड़ा। नेशनल रुरल लाइवलीहुड, जम्मू एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी यहां तक की सेना ने भी कालूचक में बुलाकर महिलाओं को ट्रेनिंग दिलवाई।

अब पूनम एक सफल कारोबारी के साथ-साथ एक मोटिवेशनल स्पीकर बन चुकी थीं। नेशनल कमिशन ऑफ़ वुमन, MSME मंत्रालय, अल्पसंख्यक मंत्रालय, पूसा इंस्टिट्यूट, गुड़गांव और चंडीगढ़ के कॉलेज में वो बच्चों को स्पीच देती हैं। वो बच्चों को वेस्ट मैनेजमेंट की जानकारी भी देती हैं। फ़िलहाल उनकी ट्रेनिंग राजस्थान के अलवर के एक गांव में चल रही है।

सामाजिक कामों में भी दिलचस्पी पूनम इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण, पौधारोपण, प्लास्टिक के ख़िलाफ़ अभियानों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। अपने इसी अभियान को आकार देने के लिए उन्हें SAVE PRITVI नाम की एक संस्था का गठन किया। इसके ज़रिए वो ना केवल ख़ुद इस धरती को बचाने में योगदान दे रही हैं बल्कि दूसरों को भी जागरूक कर रही हैं।