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बंदे में है दम

साहस का नाम है सविता

उनकी हिम्मत के आगे हिमालय भी बौना नज़र आता है, उनके हौसलों के आगे हज़ारों मील का सफ़र छोटा नज़र आता है। उन्होंने ना केवल मुश्किल हालातों पर जीत हासिल की है बल्कि मुश्किल मंज़िलों को भी मुट्ठी में भर लिया है। बिहार के एक छोटे से गांव से निकल कर आज वो आसमान की बुलंदियों पर हैं। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज की कहानी उसी बेमिसाल शख़्सियत की, जिनका नाम है सविता महतो।

दमदार शख़्सियत हैं सविता

सविता एक एडवेंचर साइकिलिस्ट हैं, वो एक माउंटेनियर भी हैं। 25 साल की सविता ने हाल ही में 19300 फीट की ऊंचाई पर मौजूद दुनिया की सबसे ऊंचे मोटर मार्ग उमलिंग ला को साइकिल से जीत लिया। 5 जून को दिल्ली से उन्होंने शुरुआत की और 28 जून को वो 5798 मीटर ऊंची उमलिंग ला पहुंच गईं। लद्दाख में स्थित ये सड़क माऊंट एवरेस्ट के बेस कैंप से भी ऊंची है। जाड़े में यहां पारा माइनस 40 डिग्री से भी कम हो जाता है। और तो और यहां मैदानी इलाक़े की तुलना में ऑक्सीजन भी 50 फीसदी हो जाती है। ऐसी दुरूह जगह पर साइकिल चला कर पहुंचना ना केवल हिम्मत की बात है बल्कि इसके लिए जबरदस्त ट्रेनिंग की भी ज़रूरत होती है।

संघर्षों से भरा जीवन

सविता छपरा के पानापुर गांव की रहने वाली हैं। पिता चौहान महतो रोज़गार की तलाश में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी चले गए तो सविता की परवरिश भी वहीं हुई। चौहान महतो मछली बेचा करते थे। आर्थिक तंगी में परिवार का गुज़ारा चलता था। इन्हीं मुश्किल हालातों में पली-बढ़ी सविता ने इस मुक़ाम को हासिल किया है। पढ़ाई के साथ खेल में दिलचस्पी थी। वो वॉलीबॉल की बहुत अच्छी खिलाड़ी थीं। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में उन्होंने हिस्सा लिया था लेकिन कुछ विषम परिस्थितियों की वजह से उन्हें वॉलीबॉल छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने पर्वतारोहण का कोर्स किया।

पर्वत लांघने की शुरुआत

पर्वतारोहण के कोर्स ने उनके जीवन को एक नई दिशा दे दी। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद वक़्त आ गया जब सविता को पर्वतारोहण का मौक़ा मिला। साल 2014 से 2019 तक वो माउंट त्रिशूल समेत 14 कई दुर्गम चोटियों पर तिरंगा फहरा चुकी हैं।

साइकिल से जुड़ा साथ

पर्वतारोहण के साथ-साथ सविता ने एडवेंचर साइकिलिंग से भी नाता जोड़ लिया। पहाड़ी इलाक़ों में साइकिलिंग करने का उनका शौक़ ऐसा परवान चढ़ा कि उन्होंने एक के बाद एक कर के साइकिलिंग में नए-नए मुक़ाम हासिल कर लिए।

2017 में महिला सशक्तिकरण और महिला सुरक्षा के लिए उन्होंने अकेले 29 राज्यों की साइकिल से यात्रा की। 12500 किलोमीटर का सफ़र उन्होंने 173 दिनों में पूरा किया।

इस शानदार क़ामयाबी की वजह से उन्हें वज्र वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित किया गया।

2017 में ही उन्होंने स्वच्छ गंगा के लिए साइकिल चलाई। गंगोत्री के दुरूह इलाक़ों तक 2000 किलोमीटर की साइकिल यात्रा 25 दिन में पूरी की।

2018 में उनका ये अभियान भारत की सीमा के पार भी पहुंच गया। भारत नेपाल मैत्री और अपने अभिभावकों की देखरेख के मुद्दे पर उन्होंने 30 दिन की साइकिल यात्रा की। इसमें उन्होंने भारत और नेपाल, दोनों देशों में 4500 किलोमीटर की दूरी तय की। इसके लिए उन्हें वोमेनोवेटर अवॉर्ड 2018 से सम्मानित किया गया।

2018 में ही सविता साइकिल से थोरांग ला पास पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। नेपाल में मौजूद इस दर्रे तक पहुंचने में सविता को सात दिन लगे।

2019 में उनकी उड़ान उन्हें एक बार फ़िर भारत के पार ले गई। सोलो साइक्लिंग करते हुए वो श्रीलंका तक गईं। महिला सशक्तिकरण और महिला सुरक्षा के मुद्दे पर उन्होंने 32 दिनों में 3700 किलोमीटर का सफ़र पूरा किया।

2021 में सविता ने ट्रांस हिमालया साइक्लिंग में हिस्सा लिया। महिला सशक्तिकरण, महिला सुरक्षा और राइट टू राइज़ का संदेश लेकर उन्होंने 72 दिनों में 5700 किलोमीटर का रास्ता तय किया।

2021 में ही सविता राइड फॉर केयर बियोन्ड कोविड अभियान में हिस्सा लिया। मनाली-लेह से श्रीनगर के बीच इसमें बेहद ऊंचाई पर स्थित 9 दर्रे शामिल थे। 1600 किलोमीटर की ये बेहद दुर्गम यात्रा उन्होंने 18 दिनों में पूरी की।

दुर्गम चोटियों पर फ़तह

सविता ने 7075 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सतोपंथ, लेह में 6153 मीटर की ऊंचाई पर स्थित स्टोक कांगरी, सिक्किम में 5030 मीटर पर स्थित रिनॉक, अरुणाचल प्रदेश में 6222 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौरीछिन ईस्ट समेत 12 चोटियों पर जीत हासिल की है। इसके साथ ही उन्होंने भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका में 33 हज़ार किलोमीटर तक की साइकिल चलाई है।

एवरेस्ट जीतने का सपना

सविता महतो इन दुर्गम चोटियों पर जीत हासिल करने के बाद अब एवरेस्ट फ़तह करना चाहती हैं। उन्होंने इसके लिए ट्रेनिंग भी शुरू कर दी है। हालांकि इस अभियान के लिए उन्हें काफ़ी फंड की ज़रूरत है जिसका इंतज़ाम उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है।

उम्मीद है कि सविता की मदद के लिए सरकारें और संस्थाएं सामने आएंगी और वो अपना ये सपना पूरा करेंगी। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट सविता को शुभकामनाएं देता है।