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खेल की दुनिया

हार नहीं मानने की कहानी

राजस्थान के छोटे से गांव खोखसर में जन्मे खेताराम की उपलब्धियां हमारे लिए केवल गर्व करने वाली बात नहीं बल्कि ये हमें प्रेरणा भी देती हैं कि जीवन में भले कितने ही उतार-चढ़ाव आए, हार नहीं माननी चाहिए। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट हम आपको मिलवा रहे हैं खेताराम सियाग से। खेताराम देश का परचम ओलंपिक तक में फहरा चुके हैं।

खेत से निकला खिलाड़ी

साल 2016 के रियो ओलंपिक में खेताराम ने मैराथन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 26वां स्थान प्राप्त किया था। 20 सितम्बर 1986 को पैदा हुए खेताराम स्कूल के दिनों से ही रोज़ाना 4 किलो मीटर दौड़ते थे। यही दौड़ उनके लिए आज भी मददगार साबित हो रही है।

देशसेवा से जुड़े खेताराम

खेताराम एक सैनिक हैं। यही वजह है कि उनकी अधिकांश ट्रेनिंग आर्मी स्पोर्ट्स इन्स्टिट्यूट, पुणे में हुई है। खेताराम के माता-पिता न तो शिक्षित थे और ना ही आर्थिक रूप से संपन्न लेकिन, उन्होंने खेताराम को अपना जीवन अपने मुताबिक़ जीने का पूरा मौक़ा दिया। खेताराम की पत्नी भी निरक्षर हैं। खेताराम ने जब ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था उस वक्त उनके परिवार में किसी को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो ओलंपिक जा रहे हैं। और जब उन्होंने विदेशी धरती पर अपनी दौड़ का दम दिखाया तो सब हैरान रह गए।

ईनाम और सम्मान

खेताराम ने की मैराथन और हॉफ़ मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया है। की ईनाम जीते। की जगह सम्मानित हुए। खेताराम प्रेरणा हैं उन लोगों के लिए जो अपनी परिस्थितियों का दुखड़ा रोते रहते हैं। एक ग़रीब परिवार से आने वाले खेताराम का गांव भी सूखाग्रस्त गांव रहा है। इतना ही नहीं यहां सड़कें तक नहीं थी। लेकिन, आज खेताराम गांव की शक्ल सूरत बदलने में भी लगे हुए हैं।

खेताराम ने जब साल 2016 में रियो ओलंपिक में हिस्सा लिया था तो ये देश के इतिहास में 56 साल बाद हुआ था कि खिलाड़ी मैराथन में हिस्सा ले रहे थे। उससे पहले साल 1960 में रोम ओलंपिक में भारतीय टीम ने शिरकत की थी। तीन लोगों की टीम में से रियो ओलंपिक में 2 लोगों ने स्थान प्राप्त किए थे।

देश और दुनिया में कई मैराथन दौड़ चुके और जीत चुके खेताराम आज अपने खेल के साथ साथ अपने गांव की दशा और दिशा को सुधारने में भी लगे हुए हैं।