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बंदे में है दम

शिक्षा और समाज में बदलाव का आधार- सरिता राय

शिक्षक समाज का आधार होते हैं। एक शिक्षक सिर्फ़ अपने दम पर समाज में बदलाव ला सकता है। बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर ना केवल वो शिक्षक बच्चों का भविष्य बनाते हैं बल्कि उनके व्यवहार और उनके परिवार में भी सकारात्मक बदलाव लाते हैं। आज शिक्षक दिवस के मौक़े पर हम एक ऐसी शिक्षिका की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने अपने दम पर ऐसे-ऐसे बदलाव किये जिसे दुनिया सलाम कर रही है। ये कहानी है सरिता राय की।

शिक्षक दिवस पर सम्मान

आज शिक्षक दिवस है। वैसे तो शिक्षक हर दिन पूजनीय, वंदनीय होते हैं लेकिन महान शिक्षाविद् भारत रत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाने की परंपरा है। आज उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों को करने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया। राज्य के 8 प्रधानाचार्यों में सरिता राय भी शामिल हैं।
प्रदेश के इस सबसे प्रतिष्ठित शिक्षक सम्मान को हासिल करना मामूली बात नहीं है। लेकिन सरिता राय ने जो काम किया है वो भी मामूली नहीं है।

काशी में विद्यालय का काया-कल्प

वाराणसी का मंडुआडीह प्राथमिक स्कूल हाइटेक हो चुका है। स्मार्ट क्लासरूम, प्रोजेक्टर रूम, 24 घंटे बिजली, पीने का साफ़ पानी, अच्छे फर्नीचर, शौचालय और सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे। स्कूल के सभी 19 पैरामीटर में ये विद्यालय अव्वल है। वाराणसी का ये स्कूल नंबर 1 स्कूल है। लेकिन कुछ साल पहले स्थिति बिल्कुल उलट थी। ये बात है साल 2018 की। जर्जर स्कूल, एक भी क़ायदे का क्लासरूम नहीं, ना बिजली-बत्ती, ना पंखे, ना पीने का पानी ना शौचालय। हर तरफ़ गंदगी का आलम। उसी साल सरिता राय को इस स्कूल की ज़िम्मेदारी मिली और तभी से यहां बदलाव की नींव पड़ी। केवल 1 साल में स्कूल की सूरत बदल गई।

स्कूल के सुधार में समाज का साथ

सरिता अपने स्कूल को बदहाल नहीं देख सकती थीं। उन्होंने इसे बदलने का बीड़ा उठाया। सरकारी स्तर पर उन्होंने फंड के लिए आवेदन किये लेकिन वो जानती थी कि अगर सरकारी फंड का इंतज़ार किया तो साल दर साल बीत जाएंगे। फ़िर उन्होंने आसपास के लोगों को इस काम से जोड़ना शुरू किया। लोगों ने भी स्कूल के काया-कल्प में ख़ूब मदद की। फर्नीचर और प्रोजेक्टर की व्यवस्था में बच्चों ने भी मदद की। किसी ने पानी का फ़िल्टर लगवा दिया तो किसी ने शौचालय ठीक करवा दिया। देखते ही देखते सामाजिक भागीदारी से ये स्कूल बिल्कुल बदल गया। जब सरिता राय ने इस स्कूल में ज्वाइन किया था तब यहां बच्चों की संख्या 164 थी और अब जबकि ये स्कूल नंबर वन स्कूल बन चुका है, यहां बच्चों की संख्या बढ़कर 265 हो चुकी है। अब तो आलम ये है कि बच्चों को बिठाने के लिए स्कूल के पास जगह नहीं है। कई बार बच्चों को स्कूल के ग्राउंड या ऑफ़िस में बिठा कर पढ़ाना पड़ रहा है।

कोरोना में बुझने नहीं दी शिक्षा की लौ

ये सरिता राय की ही हिम्मत और जज़्बा था कि उन्होंने कोरोना के उस मुश्किल दौर में भी बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा। वो ख़ुद बच्चों के घर-घर जाती और वहां उन्हें पढ़ाया करती थी। सरिता राय के इस समर्पण को देख लोग हैरान रह जाते थे। धीरे-धीरे उन्होंने मोहल्ला क्लास के नाम से एक नई शुरुआत की। इसमें कोविड नियमों का पालन करते हुए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि उनके स्कूल के बच्चों का पढ़ाई से कभी नाता ही नहीं टूटा, और जब स्कूल खुले तो वो आगे की पढ़ाई के लिए बिल्कुल तैयार थे।

पिता सबसे बड़े मार्गदर्शक

सरिता राय अपनी उपलब्धियों, अपने काम करने के समर्पण के पीछे अपने पिता की प्रेरणा को वजह बताती हैं। उनके पिता दूरसंचार विभाग में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए थे। वो हमेशा सरिता का हौसला बढ़ाया करते थे, उन्हें कुछ बेहतर करने, समाज के लिए योगदान देने की सीख दिया करते थे। 1 दिसंबर 1999 को जब सरिता ने बतौर शिक्षिका नौकरी ज्वाइन की थी तो वो बहुत ख़ुश थे। उनकी प्रेरणा से ही सरिता ने अपनी ज़िम्मेदारी का दायरा बढ़ाया और अपने दम पर स्कूल का काया-कल्प कर दिखाया। हालांकि कोरोना के दौरान सरिता के पिता इस दुनिया से चल बसे लेकिन उनकी सीख हमेशा सरिता को आगे बढ़ने का हौसला देती हैं।
आज सरिता को उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा शिक्षक सम्मान मिला है। उम्मीद है सरिता इसी तरह शिक्षा और बदलाव की लौ को जलाए रखेंगी। हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।