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धरती से

रेगिस्तान में जिसने उगा दिये जंगल

राजस्थान के रेगिस्तानी इलाक़े नागौर में अगर आपको हरे-भरे जंगल दिखाई दे जाएं तो उसे मृग-मरीचिका मत समझिएगा। ये जंगल आपकी कल्पना नहीं हक़ीक़त हैं। ये जंगल राजस्थान को तपती गर्मी से राहत दे रहा है। पर्यावरण को सुकून पहुंचा रहा है। हज़ारों पशु-पक्षियों को आसरा दे रहा है। और ये सब हुआ है सिर्फ़ एक शख़्स की बदौलत। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी शख़्स की जिसे लोग ट्री-मैन बुलाते हैं। उसी की हिम्मत हमें हौसला दे रही है कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। अगर हम अपनी धरती, अपने पेड़-पौधे, अपनी नदियों को बचाने के लिए जुट जाएं तो तस्वीर फ़िर बदल जाएगी।

हिम्मताराम की हिम्मत से आई हरियाली

45 साल पहले 96 साल की दादी ने उनके हाथों से गांव के एक मंदिर के बाहर पीपल का पेड़ लगवाया था। दादी ने सीख दी थी कि ‘पेड़ लगाने से बड़ा पुण्य और कुछ नहीं होता है। पशु-पक्षियों को दाना-पानी देना सबसे बड़ा धर्म है।‘

अपनी दादी की इसी सीख को अपने जीवन का मंत्र बनाकर हिम्मताराम ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसने ना केवल उनकी दादी की सीख को साकार कर दिया बल्कि पूरे राजस्थान में एक नई बयार बहा दी। दादी ने जिस पौधे को उनसे लगवाया था वो आज विशाल आकार ले चुका है। उसके नीचे सौ-दो सौ नहीं पांच सौ लोग एक साथ बैठ सकते हैं।

45 साल पहले हिम्मताराम ने जिस अभियान को शुरू किया था वो आज विस्तार ले चुका है। पहले वो अपने घर के आस-पास पौधे लगाया करते थे लेकिन इसमें तेज़ी तब आई जब उन्होंने नागौर के हरिमा गांव में अपने पैसे से छह हेक्टेयर ज़मीन ख़रीदी। लोग ज़मीन ख़रीद कर घर बनवाते हैं, खेती करते हैं लेकिन हिम्मताराम ने तो इस पूरी की पूरी ज़मीन को जंगल में बदल दिया। इस ज़मीन पर उन्होंने 11 हज़ार से ज़्याद पौधे लगाए जो अब पेड़ बन चुके हैं। इस जंगल ने पूरे इलाक़े की तस्वीर बदल दी। खेजड़ी, नीम, गुलमोहर, बेर समेत सैकड़ों प्रजातियों के पेड़ इस जगह को रेगिस्तान का स्वर्ग बना रहे हैं। जंगल बसा तो पशु-पक्षियों का बसेरा भी बना। इस जंगल में 300 से ज़्यादा मोर और हज़ारों पक्षियों ने अपना डेरा बनाया हुआ है। खरगोश, नीलगाय, सांप समेत और भी कई जानवर इस जंगल में रहते हैं।

पेड़ के साथ पशु-पक्षियों से प्यार

हिम्मताराम पशु-पक्षियों के लिए भी लगातार काम कर रहे हैं। वो अपने जंगल में रोज़ाना 20 किलो दाने डालते हैं ताकि मोरों और दूसरे परिंदों को खाना मिल सके। 300 परिडों और वाटर होल में पानी भरते हैं ताकि पशु-पक्षियों को पानी के लिए भटकना ना पड़े। इसके साथ ही वो इनकी सुरक्षा का भी ख़्याल रखते हैं। अब तक वो 2500 से ज़्यादा घायल चिंकारा, नीलगाय और मोरों का इलाज करवा चुके हैं। राज्य भर में उन्होंने शिकारियों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाई हुई है। वो ख़ुद के ख़र्च पर शिकारियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे लड़ते हैं। कई शिकारियों को तो उन्होंने सज़ा तक दिलवाई है।

अपने दम पर 5 लाख पौधारोपण

हिम्मताराम नागौर समेत राजस्थान के क़रीब 5 ज़िलों में पेड़ संरक्षण का काम कर रहे हैं। अब तक वो साढ़े 5 लाख से ज़्यादा पौधे लगा चुके हैं जिनमें 3.5 लाख तो पेड़ बन चुके हैं। अपने जंगल को आकार लेता देख हिम्मताराम का हौसला बढ़ा। उन्होंने अपने काम को आगे बढ़ाते हुए पर्यावरण प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू कर दिया। यहां वो आने वाले लोगों को पेड़ और जीव-जंतु संरक्षण की व्यापक जानकारी मुहैया करवाते हैं।

हिम्मताराम का 6 ज का मंत्र

हिम्मताराम पेड़-पौधों और प्रकृति पर हर वक़्त बात करने के लिए तैयार रहते हैं। उन्होंने हमें बताया कि ‘6 ज का मंत्र’ ही इस धरती को विनाश से बचा सकता है। ये 6 ज हैं ज़मीन, जंगल, जल, जीव-जंतु और जलवायु। हिम्मताराम कहते हैं कि बिना भोजन-बिना पानी के तो इंसान कुछ समय तक ज़िंदा भी रह सकता है लेकिन बिना ऑक्सीजन उसका कुछ पल भी जीना मुश्किल है। वो आश्चर्य जताते हैं कि बावजूद इसके लोग पेड़ों के बारे में क्यों नहीं सोच रहे, उनका संरक्षण क्यों नहीं कर रहे। उनके मुताबिक़ पेड़ और पर्यावरण की रक्षा सिर्फ़ सरकारों का काम नहीं है। हर शख़्स को इसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी पड़ेगी।

काम को मिला सम्मान

पिछले 45 सालों से अनवरत पेड़ लगाने और वन्यजीवों के संरक्षण में जुटे हिम्मताराम को अब तक सैकड़ों सम्मान मिल चुके हैं। पिछले साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। हिम्मताराम कहते हैं कि इस सम्मान को मिलने के बाद उनकी ज़िम्मेदारी और बढ़ गई है। अब वो बच्चों और युवाओं को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। वो लोगों को बच्चे के जन्म के साथ हर साल एक-एक पौधा लगाने की सलाह देते हैं। वो कहते हैं कि अगर हर इंसान ऐसे पेड़ लगाएगा तो अपनी पूरी उम्र में वो क़रीब 75 से 80 पेड़ लगा देगा। उसके लिए धरती का कर्ज चुकाने के लिए इससे बड़ा योगदान और क्या हो सकता है। वो चाहते हैं कि नई पीढ़ी पेड़ों और पर्यावरण के महत्व को समझे, तभी धरती बच पाएगी।

राज्य और केंद्र सरकारों के साथ मिलकर काम

हिम्मताराम राजस्थान में ज़िला प्रशासन और राजस्थान सरकार के साथ मिल कर वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के लिए चल रही योजनाओं पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा वो केंद्र सरकार की योजनाओं में भी भागीदारी निभा रहे हैं। उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को नागौर के गोगेलाव रिज़र्व फॉरेस्ट एरिया को इको टूरिज़्म के तौर पर विकसित करने का प्रस्ताव भी सौंपा हैं।

नशा मुक्ति अभियान में भी भूमिका

हिम्मताराम समाज में बढ़ रहे नशे की लत के ख़िलाफ़ भी अभियान चला रहे हैं। वो अपने जागरूकता संदेशों से लोगों को नशे से दूर रहने की सलाह देते हैं। इसके साथ ही रक्तदान और समाजसेवा से जुड़े दूसरे कामों के लिए भी वो हमेशा तैयार रहते हैं।

हिम्मताराम जैसे योद्धा ना केवल समाज और देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए नज़ीर हैं । उनका जज़्बा, उनकी सोच और उनका समर्पण हमें भी प्रकृति के लिए अपना योगदान देने के लिए प्रेरित कर रहा है।