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धरती से

वेस्ट को वंडर बनाने का हुनर

हमारे देश में कितने मंदिर हैं ? या कितने मंदिरों में नारियल चढ़ाया जाता, उसे फोड़ा जाता है ? ये सवाल आपको अजीब लग रहे होंगे। है ना ? चलिए छोड़िए। ये बताइये कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले नारियल को तो प्रसाद के तौर पर हम ग्रहण कर लेते हैं लेकिन उसके खोल का, उसके रेशों का क्या होता है ? इन सवालों से परेशान ना होइये, क्योंकि आज की हमारी कहानी नारियल के इन्हीं खोलों और रेशों से जुड़ी है और ये कहानी जुड़ी है प्रकाश चड़ोकर से।

इंजीनियर जब घर लौट कर आया

भोपाल के रहने वाले प्रकाश इंजीनियर हैं। साल 2012 में उन्होंने भोपाल के पॉलिटेक्निक से प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया और फिर नौकरी करने दुबई चले गए। 5 साल तक वहीं रहे। अच्छी ख़ासी तनख़्वाह की नौकरी और आगे बढ़ने के मौक़े। सबकुछ था उनके पास लेकिन वो अपने घर लौट आए। घर-परिवार के लोगों को लगा कि अब वो विदेश नहीं, यहीं रह कर कोई अच्छी सी नौकरी करेंगे लेकिन प्रकाश ने तो कुछ और ही सोच रखा था।

पर्यावरण के लिए काम करने का संकल्प

भोपाल आने पर प्रकाश ने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने का फ़ैसला किया। उन्होंने इसकी शुरुआत की घर से निकलने वाले कचरे से खाद बनाने से। वो भोपाल की एक कॉलोनी से कचरे इकट्ठा करते और फिर उससे खाद तैयार किया करते थे। इस काम में प्रकाश का मन रम गया था। वो एक तरफ शहर में बढ़ती कचरे की समस्या को कुछ हद तक कम कर रहे थे तो दूसरी तरफ खेती के लिए अच्छी खाद भी तैयार कर रहे थे।

मंदिर में आया नया आइडिया

प्रकाश अक्सर मंदिरों में नारियल के खोल और रेशों के ढेर लगे देखा करते थे। नारियल तो प्रसाद में इस्तेमाल हो जाता था लेकिन उसके खोल और रेशे को जला दिया जाता था। इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान होता था। कचरे से खाद बनाने में जुटे प्रकाश को इन खोल और रेशों के इस्तेमाल की नई तरकीब सूझी। उन्हें लगा कि इस वेस्ट से कुछ वंडर बनाए जा सकते हैं और उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया। आइडिया ये था कि इन नारियल के खोलों और रेशों की मदद से कुछ ऐसी कलाकृतियां और वस्तुएं तैयार करें जो बिल्कुल अलग हों। उन्होंने भोपाल के पास सिहोर ज़िले में स्थित सलकनपुर मंदिर के प्रबंधन से इस बारे में बात की। प्रबंधन के अधिकारियों को उनका सुझाव पसंद आया और उन्होंने अपनी तरफ से हर मदद करने का आश्वासन दिया।

ख़ुद तैयार की मशीन

प्रकाश को इस काम के लिए एक ख़ास तरह की मशीन की ज़रूरत थी, लेकिन ये मशीन काफ़ी महंगी पड़ रही थी। यहां उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का इस्तेमाल किया और ख़ुद ही एक मशीन तैयार कर ली। उन्होंने मंडीदीप इंडस्ट्रियल एरिया में एक जगह किराये पर ले ली और काम शुरू कर दिया। प्रकाश बताते हैं कि नारियल के खोल से तीन तरह के पदार्थ निकलते हैं। खोल के सख़्त टुकड़े, रेशे और बारीक कण। खोल के सख़्त टुकड़ों को मशीन से क्रश कर दिया जाता है। जो डस्ट बनती है उससे कोको-पिट बनाई जाती है जो मिट्टी में खाद का काम करती है। इसके रेशों से मनी प्लांट जैसी लताओं को सहारा देने के लिए सपोर्ट बनाए जाते हैं। नारियल खोल के कड़क टुकड़ों से शो पीस जैसे टेबल लैंप, पूजा घर और दूसरी चीज़ें भी बनाई जा रही हैं। उन्होंने कॉयर से जुड़ी हुई कंपनी की भी शुरुआत की।

नगर निगम का मिला साथ

जल्द ही प्रकाश का काम लोगों तक पहुंचने लगा। भोपाल नगर निगम ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। भोपाल के मंदिरों से रोज़ाना क़रीब 20 टन नारियल के खोल और रेशे निकलते हैं। अब भोपाल के सभी मंदिरों से निकलने वाले नारियल के खोल और रेशे मंडीदीप में प्रकाश के प्लांट पहुंचने लगे। प्रकाश ने अपने काम को नेटवर्किंग से जोड़ा।

क़ामयाबी के बाद बढ़ाया और क़दम

जो प्रकाश ने स्वच्छता से समृद्धि संस्था से भी जुड़ गए। वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के और भी कई कामों की शुरुआत की। भोपाल में कबाड़ से बनाया हुआ उनका रेडियो लोगों के आकर्षण का केंद्र भी बना। वो आम लोगों, स्कूली बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का अभियान भी समय-समय पर चला रहे हैं।

प्रकाश की ये कोशिश हमारे देश को बड़े बदलाव की तरफ ले जा रही है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट प्रकाश को शुभकामनाएं देता है।