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धरती से

वो चलते गए, जंगल बनते गए

आपने अपने जीवन में कितने पौधे लगाएं होंगे, ऐसे पौधे जो पेड़ बने हों। 10-20 या 50। लेकिन आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट जिसकी कहानी लेकर आया है वो अब तक लाखों पौधे लगा चुका है। वो पौधे आज विशाल पेड़ का रूप धारण कर चुके हैं जिनसे बना है एक घना जंगल। आज विकास के नाम पर सबसे पहले जिस चीज़ की बलि ली जाती है वो होते हैं पेड़। तमाम नियम-क़ानूनों को धता बता कर, पेड़ों को बड़ी आसानी से काट दिया जाता है। इस समय देश ही नहीं दुनिया को उस नायक की ज़रूरत है जिसकी कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं। इस महान शख़्सियत का नाम है जाधव पायेंग।

जाधव का 1360 एकड़ का जंगल

सुन कर हैरान रह जाएंगे। असम में जोरहाट के रहने वाले जाधव पायेंग ने अपने दम पर 1360 एकड़ का घना जंगल उगाया है। जाधव अपने परिवार के साथ ब्रह्मपुत्र नदी के द्वीपीय इलाक़े अरुना सपोरी में रहते थे। पौधारोपण का उनका अभियान तब शुरू हुआ था जब वो 10वीं कक्षा में पढ़ते थे। बात 1978 की है। हर साल की तरह उस बार भी ब्रह्मपुत्र नदी में सैलाब आया था। इस बाढ़ से ना केवल इंसान बल्कि पशुओं पर भी आफ़त बरसती थी। इसी बाढ़ में कई सांप और जंगली जानवरों को मरा देख जाधव परेशान हो उठे। उन्हें पता चला कि लगातार कम होते पेड़ और जंगल से बाढ़ और विकराल हो जाती है। पेड़ ना होने से सांपों को बचने की जगह नहीं मिलती। तभी से जाधव ने पौधे लगाने का संकल्प लिया। वो संकल्प भीष्म प्रतिज्ञा से कम नहीं था। पिछले 40 से भी ज़्यादा समय से जाधव पौधे लगा रहे हैं।

फॉरेस्ट मैन का ख़िताब

जाधव पायेंग के संकल्प का परिणाम है अरुणा सपोरी में खड़ा 1360 एकड़ से भी ज़्यादा इलाक़े में फैला विशाल जंगल। जोरहाट का ये जंगल ना केवल असम के लिए बल्कि पूरे हिंदुस्तान के ले एक वरदान है। जाधव के इस जंगल में कई बाघ, भालू, हिरन, सैकड़ों प्रजाति के परिंदें और सांप अपना बसेरा बना चुके हैं। जाधव 1978 से इस काम को चुपचाप करते गए। हज़ारों एकड़ में फ़ैली बंजर ज़मीन को उन्होंने जंगल लगाने के लिए चुना।

वो बीज से पौधे उगाते या आसपास उगे पौधों को उस खाली ज़मीन पर जाकर लगा देते। उसे खाद-पानी देते। उसकी सुरक्षा के उपाय करते। शुरुआत में तो उनके आसपास के लोगों को भी नहीं पता था कि वो क्या कर रहे हैं लेकिन जब जंगल ने आकार लेना शुरू किया तो जाधव की वाहवाही होने लगी। लेकिन इससे जाधव रूके नहीं। वो सतत आगे बढ़ते गए और उनके साथ बढ़ता गया उनका जंगल। वो आज भी रोज़ सुबह 5 बजे उठकर जंगल पहुंच जाते हैं। पेड़ों की देखरेख करते हैं। साफ़-सफ़ाई करते हैं।

जाधव को मिला पद्म सम्मान

जब जाधव के इस महाअभियान की चर्चा दिल्ली पहुंची तब जाकर लोगों को उनके इस विशाल काम का पता चला। साल 2012 में JNU ने दुनिया को पहली बार जाधव से रू-ब-रू कराया। उन्हें सम्मानित किया। इसके बाद साल 2015 में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। इसके अलावा भी उन्हें कई तरह के सम्मान दिये गए। यहां तक कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपने वक्तव्य दिये हैं। फ्रांस में ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑफ़ सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सातवें आयोजन में उन्होंने पूरी दुनिया से सिर्फ़ आईटी प्रोफ़ेशनल्स ही नहीं फॉरेस्ट मैन भी तैयार करने की अपील की। उन्हें काजीरंगा विश्वविद्यालय और असम कृषि विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से भी सम्मानित किया है।

कई देशों ने मांगी मदद

जाधव पायेंग के इस कारनामे की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। बंजर और सूखाग्रस्त मेक्सिको की सरकार ने जाधव को अपने यहां बुलाया। उन्हें तमाम तरह की सुविधाएं देने की पेशकश की। मेक्सिको ने जाधव से मदद मांगी है कि वो कैसे अपने देश को फ़िर से हरा-भरा कर सके। धरती बचाने के लिए जाधव के इस महा योगदान की कहानी अमेरिका के एक स्कूल के पाठ्यक्रम में भी शामिल की गई है।