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धरती से

प्रकृति से सामंजस्य की कोशिश

प्रकृति के मुताबिक़ अगर हम नहीं चले तो आने वाले वक़्त में कई ऐसे परिणाम सामने आएंगे जो मानवता के लिए ख़तरनाक साबित होंगे। इस बात को बड़े भले ही ठीक से ना समझ पाएं लेकिन बच्चे और युवा बहुत बेहतर तरीक़े से समझ रहे हैं। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आइये आज मिलते हैं ऐसी एक युवा जो बायोडिग्रेडेबल पॉट बनाती हैं। तेलंगाना के जोगुलम्बा गडवाल की रहने वाली श्रीजा 14 साल की हैं और वो फ़िलहाल मूंगफली के छिलकों से पॉट बना रही हैं। ऐसे पॉट जो पौधों की नर्सरी में पॉलिथिन की जगह ले रहे हैं।

शिक्षक की मदद से किया ये प्रयास

श्रीजा की इस सोच को साथ मिला उनके शिक्षक का। गणित के शिक्षक ऑगस्टियन ने श्रीजा की हर संभव मदद की। पेड़ पौधों से स्नेह रखने वाली श्रीजा एक दिन पेड़ पौधों के साथ काम कर ही रही थी कि उनकी नजर कुछ नये पौधों पर गयी जो काली पॉलिथिन में रखे हुए थे। श्रीजा उन काली पॉलिथिन को देखकर परेशान हो गयी। आसपास और भी ऐसी काली पॉलिथिन रखी हुई थी। श्रीजा ये सोचने लगी कि आख़िर गमले में इन पौधों को लगाने के बाद इन पन्नियों के साथ क्या होता हैं। श्रीजा समझ चुकी थी कि पौधे लगा कर पर्यावरण बचाने के दौरान अनजाने में लोग इन पन्नियों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में जब उन्होंने इस बारे में अपने शिक्षक ऑगस्टियन से बात की तो उन्होंने श्रीजा को इसका प्राकृतिक विकल्प तैयार करने के लिए प्रेरित किया।

कोविड लॉकडाउन के दौरान किए प्रयोग

श्रीजा और उनके शिक्षक ने कोविड 19 के दौरान लगे लॉकडाउन का सदुपयोग इन पौधों के लिए बायोडिगरेडेबल पॉट बनाने के लिए किया। उन्होंने बहुत खोजबीन के बाद ये तय किया की वो मूंगफली के छिलकों से इन पॉट को बनाएंगे। ज़रा सोचिए, हम मूंगफली को छील कर उसके दानों का इस्तेमाल कर लेते हैं लेकिन श्रीजा ने उसके छिलकों के इस्तेमाल की विधि तैयार की। मूंगफली के छिलकों से तैयार गमलों से न सिर्फ पन्नी का उपयोग ख़त्म होगा बल्कि ऐसा करने से पौधों की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। किसान या मिलों में मूंगफली के छिलकों को आमतौर पर जला दिया जाता है या फ़िर मिट्टी में डाल दिया जाता है।
मूंगफली के छिलके नाइट्रोजन, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे पोषक तत्वों का एक अद्भुत स्रोत होने के अलावा लम्बे समय तक नमी बनाए रखते हैं।

कैसे बनते हैं ये पॉट

मूंगफली के छिलकों से पॉट बनाने में श्रीजा की मदद उनके साथी के हरिकृष्ण ने की। सबसे पहले उन्होंने घर के पास की एक मिल से बड़ी मात्रा में मूंगफली के छिलकों का इंतज़ाम किया। मूंगफली के छिलके को सुखा कर एक मिक्सर में पीसकर, पानी मिलाकर एक गूदा तैयार किया और फ़िर कप बनाने के लिए इसे पानी की बोतल पर ढाला कर प्रोटोटाइप बनाया गया। श्रीजा अपनी दादी को भी श्रेय देती हैं, जिन्होंने उन्हें यह पता लगाने में मदद की कि मूंगफली के खोल के मिश्रण में ऐसा क्या मिलाया जाए जिससे वो मजबूत हो सके। श्रीजा ने अपने बायोपोट को मैन्युअल रूप से ढाला। वहीं ऑगस्टियन ने इन बच्चों को समझाया कि ज़मीन के नीचे इन्हें दबा देने पर ये 20 दिन से भी कम में खाद में बदल जाएंगे।

सरकार का भी मिला सहयोग

तेलंगाना सरकार को जब श्रीजा के इस नवाचार की जानकारी मिली तो राज्य के सूचना प्रोद्यौगिकी वैद्युतीय एवम् जनसंचार विभाग के एक उपक्रम टी-वर्क्स के सीईओ सुजय कर्णपुरी ने श्रीजा से संपर्क किया। वो ख़ुद भी डिग्रेडेबल पॉट पर काम कर रहे थे और उन्हें श्रीजा का नवाचार उपयोगी लगा। इसके बाद उन्होंने श्रीजा के इस प्रयास को आगे बढ़ाने में मदद की। श्रीजा के इस नवाचार में पूर्ण सम्भावना है कि वो पौधों को प्लास्टिक की थैली का अच्छा विकल्प तैयार करेंगी जिससे प्लास्टिक से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी।

पेटेंट के लिए आवेदन किया

श्रीजा और उनके शिक्षक ने मिलकर महज 21 महीने के वक़्त में बायोडिग्रेडेबल पॉट तैयार कर लिए और अब उन्होंने इसके पेटेंट की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। उन्होंने एक फर्म श्रीजा ग्रीन गैलेक्सी का रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया है। श्रीजा आगे चल कर अपनी कंपनी की सीईओ होंगी।

परिवार का मिला भरपूर सहयोग

श्रीजा के माता-पिता ने भी उनका इस काम में भरपूर सहयोग किया है। उनके पास ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा था जिस पर वो कपास उगाते थे। उन्होंने श्रीजा को इस ज़मीन का उपयोग करने की अनुमति दी। श्रीजा पर उनका विश्वास कितना सही था इसका प्रमाण है श्रीजा को मिलने वाले पुरस्कार। श्रीजा और ऑगस्टियन को राज्य और केंद्र सरकार से कई पुरस्कार मिले हैं। तेलंगाना स्टेट इनोवेशन सेल द्वारा इंस्टा इनोवेटर और श्रीजा को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद से स्कूली बच्चों द्वारा नवाचार की श्रेणी में अवार्ड दिया गया।

श्रीजा के ये बायोडिग्रेडेबल पॉट देश ही नहीं दुनिया के भी कई हिस्सों में पहुंचे, इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की यही कामना है।