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बंदे में है दम

कश्मीर में बदलाव की बयार

कुछ बदलाव इतने सकारात्मक होते हैं कि उनका असर ना सिर्फ़ परिवार पर पड़ता है बल्कि समाज और देश पर भी दिखाई देता है। कश्मीर को डोडा में तीन बहन-भाई ने ऐसे ही बदलाव की नींव रखी है जिससे कश्मीर के युवाओं के बीच प्रेरणा का संचार हुआ है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट उन्हीं तीन भाई-बहनों की कहानी लेकर आया है।

सिविल सर्विस की परीक्षा में तीनों पास

हुमा अंजुम वानी, इफरा अंजुम वानी और सुहैल अहमद वानी। ये नाम हैं उन तीन भाई-बहनों के जो कश्मीर के युवाओं को नया रास्ता दिखा रहे हैं। नई उम्मीद और नए सपने देखने की सोच पैदा कर रहे हैं और उन सपनों के साकार होने का हौसला भी भर रहे हैं। ये तीनों बच्चे उस मक़ाम पर पहुंच गये हैं जिसकी कभी इस परिवार ने कल्पना तक नहीं की थी। तीनों भाई-बहनों ने जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर ली है और अब ये तीनों अफ़सर बनने वाले हैं।

मुफ़लिसी को मेहनत से टक्कर

वानी परिवार डोडा ज़िले के कहारा तहसील में पड़ने वाले एक सुदूर गांव में रहता है। घर के मुखिया और इन तीन भाई-बहनों के पिता मुनीर अहमद मजदूरी करते हैं। महीने की औसतन कमाई करीब 15 हज़ार रुपये है। एक छोटे से घर में ये परिवार रहता है। बचपन से ही ये तीनों बच्चे एक ही कमरे में रहा करते थे। परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी तो पढ़ने के लिए किताबों का इंतज़ाम भी मुश्किल था। एक ही किताब से तीनों पढ़ाई किया करते थे और अक्सर इन्हीं बातों को लेकर तीनों के बीच झगड़ा भी हुआ करता था। आज जब बच्चे-बच्चे के पास मोबाइल फ़ोन है, इन तीनों भाई-बहनों के पास कभी फ़ोन नहीं था। ज़रूरत पड़ने पर वो अपनी मां के फ़ोन से काम किया करते थे। भले ही परिवार में पैसों का अभाव था लेकिन पढ़ने और आगे बढ़ने का जज़्बा कूट-कूट कर भरा हुआ था। माता-पिता ने भी शिक्षा के लिए अपने बच्चों का हमेशा हौसला बढ़ाया। बच्चों की पढ़ाई में कोई परेशानी ना हो इसके लिए मां रेहाना बेगम ने अपने गहने तक बेच दिये।

एक साथ चुनी भविष्य की राह
हुमा और इफरा ने साल 2020 में इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए किया तो सुहैल का ग्रेजुएशन 2019 में पूरा हुआ। इसके बाद तीनों भाई-बहनों ने तय किया कि वो सिविल सर्विस की तैयारी करेंगे। सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी आसान नहीं होती। ना केवल मेहनत से पढ़ाई करनी पड़ती है बल्कि कई तरह की किताबों की भी ज़रूरत होती है। ये फ़ैसला वानी भाई-बहनों के लिए भी बड़ी चुनौती था लेकिन तीनों ने ठान लिया था। एक ही किताब से तीनों भाई-बहन पढ़ाई करने लगे। एक-दूसरे से विषयों पर बात करते और दिक़्क़त आने पर एक-दूसरे को समझाया करते थे। एक तरफ़ जहां आज सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी बिना कोचिंग के छात्र सोच भी नहीं सकते, पैसों के अभाव की वजह से वानी परिवार कोचिंग का सपना भी नहीं देख सकता था। लेकिन उन तीनों भाई-बहनों ने अपनी मेहनत और एक दूसरे का साथ देकर इस मुश्किल को पार कर लिया। जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विस की परीक्षा में सुहैल ने 111वां, हुमा ने 117वां और इफरा ने 143वां स्थान हासिल किया। इफरा और सुहैल पहली बार में ही सफल हुए जबकि हुमा ने ये कामयाबी दूसरे प्रयास में हासिल की है।

जम्मू-कश्मीर में पहली बार ऐसा नतीजा

हुमा, इफरा और सुहैल ने एक साथ सिविल सर्विस की परीक्षा पास की है। वो अपने परिवार में सरकारी अधिकारी बनने वाले पहले सदस्य हैं जबकि पूरे राज्य में भी एक साथ तीन भाई-बहनों ने पहली बार एक साथ सिविल सर्विस की परीक्षा पास की है।

आज इस परिवार की मेहनत रंग ला चुकी है। घर के तीनों बच्चे अधिकारी बन रहे हैं। इन बच्चों की मेहनत ने परिवार की किस्मत को संवार दिया है। वानी भाई-बहनों के संघर्ष और उनकी कामयाबी सैकड़ों-हज़ारों युवाओं को प्रेरणा देती है कि ईमानदारी से की गई मेहनत कभी नाकाम नहीं होती।