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कौन कहता है आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों

गुरुग्राम की रहने वाली समीरा सतीजा ऐसी ही एक सिटीजन वॉलेंटियर हैं जिन्होंने आसमान में सुराख़ करने का काम कर दिखाया है। दिल्ली में पैदा हुई, यहीं पढ़ी और दिल्ली के लेखा परीक्षा विभाग में कार्यरत समीरा अपने परिवार के साथ रहती हैं। अपनी व्यस्त ज़िंदगी के बीच से समय निकालकर समीरा वेस्ट प्रबंधन और पर्यावरण के क्षेत्र में एक स्वयंसेवक के रूप में काम कर रही हैं और अपने आसपास के लोगों को भी डिस्पोजेबल प्लास्टिक और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ों को लेकर जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं। समीरा क्रॉकरी बैंक चलाती हैं। इस बैंक की शुरुआत उन्होंने 22 जून 2018 को की थी। समीरा बचपन से ही कूड़े के मैनेजमेंट को लेकर सतर्क रहती थी। वो कचरे में फेंके जाने वाले सामान को कम करने और उनसे कुछ नया बनाने के लिए हमेशा से ही प्रयासरत रहीं हैं।

हमेशा से थी कूड़े के निष्पादन के प्रति सजग

स्वभाव से अंतर्मुखी समीरा बचपन से ही कला से जुड़ी रही हैं। इसके साथ ही वो पर्यावरण को लेकर गंभीर थीं। उत्तर भारत में रहने के चलते समीरा लगभग हर दूसरे दिन सड़क किनारे भंडारा लगते देखती थी। ज़रूरतमंदों को खाना खिलाने के इस पुण्य कर्म के साथ लगने वाले प्लास्टिक की क्रॉकरी के भंडार से समीरा सबसे अधिक परेशान होती थीं। प्लास्टिक के इस कूड़े को बाद में समेटना एक और बड़ी चुनौती होती है। कई बार ये कचरा नालियों में अटककर उसे जाम कर देता है और बारिश में जलभराव के हालात हो जाते हैं। कई बार तो इसे जानवर खा लेते हैं और उनकी तबीयत ख़राब हो जाती है। और तो और अक्सर सफ़ाई कर्मचारी इन्हें उठाने के बजाए इन्हें जला देते थे जिससे और ज़्यादा प्रदूषण फैलता था। ये बातें समीरा को इतनी कचोटने लगी कि उन्होंने कुछ करने की ठान ली। शुरुआत में वो ऐसे लोगों और संस्थाओं से बात करती थीं, उन्हें प्लास्टिक के बर्तन इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दिया करती थीं। लोग उनकी बात सुनते भी थे लेकिन दिक्कत ये थी कि लोगों के पास कोई दूसरा अच्छा विकल्प नहीं था। इसी के बाद समीरा सतीजा ने खोला पहला क्रॉकरी बैंक।

समीरा ने अपने घर में ही इस बैंक की शुरुआत की। उन्होंने छोटे बड़े हर साइज़ के कई बर्तन ख़रीदें और उन्हें अपने घर में रख लिया। अब जो भी भंडारा कर रहा है वो समीरा के पास आकर इन्हें ले जा सकता हैं। वो इसके लिए कोई पैसा नहीं लेती हैं। हां, उनकी बस एक शर्त होती है कि जो भी इन्हें ले जाये वापस धोकर ही करे। शुरुआती दौर में समीरा ने इस बैंक का प्रचार आसपास के लोगों से बात करके और सोशल मीडिया के ज़रिए किया था। समीरा के इस क्रॉकरी बैंक से कोई भी, किसी भी प्रकार के सामाजिक या धार्मिक कार्यक्रम के लिए फ़्री में बर्तन ले सकता है।

हर किसी ने लिया क्रॉकरी बैंक को हाथों-हाथ

समीरा की ये मुहीम आज रंग ला चुकी हैं। वो अब तक साढ़े पांच लाख से अधिक डिस्पोजेबल क्रॉकरी के इस्तेमाल को रोक चुकी हैं। समीरा ने जब लोगों को इस बैंक की अहमियत को लोगों को समझाया तो हर किसी ने इसका स्वागत किया। समीरा कहती भी हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल में आपको बस कुछ ऐसे स्वयंसेवी चाहिए जो इन बर्तनों को धो सकें। समीरा बताती हैं कि आज तक उनके क्रॉकरी बैंक की एक चम्मच तक ग़ायब नहीं हुई है। वो जितनी क्रॉकरी लोगों को सार्वजनिक भोज के लिए देती हैं, उतनी ही उनके पास वापस आती हैं।

लोगों को प्रेरित करना एकमात्र उद्देश्य

समीरा ने आज तक किसी एनजीओ या संस्था की गठन नहीं किया। यहां तक कि अगर कोई संस्था उनसे बर्तन लेने आती भी तो वो उन्हें ही प्रेरित करती हैं कि वो भी बर्तनों के ऐसे ही बैंक खोले। वो चाहती हैं कि ऐसे बैंक, हर सोसाइटी, हर मोहल्ले में खुल जाये ताकि प्रदूषण से लड़ने में मदद मिल सके। समीरा को किसी लोकप्रियता की कोई ललक नहीं। वो तो बस कूड़े के मैनेजमेंट और साफ़-सफ़ाई की मुहिम से जुड़ी हुई हैं। समीरा सतीजा की इस पहल को मिनिस्ट्री ऑफ स्टील ने सस्टेनेबिलिटी विज़न 2030 के लिए भी चुना है। आज भी समीरा अपने दैनिक कार्यों के साथ-साथ कुछ न कुछ ऐसा करती ही रहती हैं जिससे कि कचरे का निष्पादन सही तरीके से हो सके और लोग इस दिशा में सोचना शुरू करें। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट समीरा सतीजा और उनसे जुड़े लोगों को बधाई देता है, और पाठकों से अपील करता है कि वो भी ऐसे क्रॉकरी बैंक अपने-अपने मोहल्लों और सोसाइटी में बनाए और पर्यावरण को प्लास्टिक के प्रदूषण से बचाएं।