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बंदे में है दम

विंग कमांडर दीपिका

विंग कमांडर दीपिका मिश्रा देशप्रेम, शौर्य और कर्तव्यनिष्ठा की वो मिसाल हैं जिन्हें आज पूरा देश सलाम कर रहा है। जब दीपिका ने वायुसेना की वर्दी पहनी थी तब उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की कसम भी खाई थी। दीपिका ने ना केवल अपनी वो कसम पूरी की बल्कि कई पीढ़ियों के लिए मिसाल भी बन गईं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी देश की इसी जांबाज़ नारी की- कहानी विंग कमांडर दीपिका मिश्रा की।

वायुसेना पदक का सम्मान

76वें स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर दीपिका मिश्रा को वायुसेना पदक से सम्मानित किया गया। दीपिका को ये सम्मान उनके अतुलनीय साहस, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा के लिए दिया गया। ये सम्मान उन्हें उस मुश्किल हालात से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए दिया गया जिसमें अच्छे-अच्छे पायलट को भी सोचना पड़ जाए।
ये घटना पिछले साल अगस्त की है। मध्य प्रदेश का एक हिस्सा भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया था। हालात ऐसे हो चुके थे कि गांव के गांव डूब रहे थे और इंसानी जान संकट में थी। तब 2 अगस्त को विंग कमांडर दीपिका मिश्रा को राहत और बचाव अभियान की ज़िम्मेदारी दी गई। बेहद ख़राब और ख़तरनाक मौसम के बीच दीपिका ने अपने अभियान की शुरुआत की। सूरज डूबने के बावजूद दीपिका ने अकेले प्रभावित इलाक़े का दौरा किया। प्रभावित क्षेत्र के हवाई सर्वेक्षण और उससे जानकारियां जुटाईं। वायुसेना के अलावा, NDRF, SDRF और स्थानीय प्रशासन के साथ इन जानकारियों को साझा किया गया। ये जानकारी पूरे बचाव अभियान की रणनीति बनाने में बहुत कारगर साबित हुई। अगले दिन से वो फ़िर से मिशन पर निकल पड़ीं। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों का रेस्क्यू कर उन्हें पानी से दूर सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया। इस दौरान उन्होंने एक ऐसे मिशन को अंजाम दिया जिससे उनकी ख़ूब तारीफ़ हुई। चारों तरफ़ से पानी में घिरे एक मकान की छत पर चार लोग फंसे हुए थे। अंधेरा हो रहा था और पानी की वजह से हेलीकॉप्टर की ऊंचाई और गति का तालमेल नहीं बैठ पा रहा था। बावजूद तमाम ख़तरे के दीपिका ने अपने हेलीकॉप्टर को काफ़ी नीचे उड़ाया और चारों को सुरक्षित निकाल लिया। 8 दिन के इस अभियान में उन्होंने 47 लोगों की जान बचाई। इसी बहादुरी के लिए दीपिका को वायुसेना मैडल से सम्मानित किया गया। दीपिका ये सम्मान पाने वाली पहली महिला हैं।

2006 में पासआउट

दीपिका दिसंबर 2006 में वायुसेना एकेडमी से पासआउट हुई थीं। पहले शॉर्ट सर्विस कमिशन से भर्ती हुई महिला पायलट सिर्फ़ सिंगल इंजन हेलीकॉप्टर ही उड़ा सकती थीं लेकिन 2010 में वायुसेना ने अपने नियम बदल दिये और उन्हें डबल इंजन के मीडियम और हैवी हेलीकॉप्टर उड़ाने की अनुमति भी दे दी गई। इससे दीपिका के सपनों को एक नया आकाश मिल गया। उन्होंने बरेली और ऊधमपुर से चेतक और चीता हेलीकॉप्टर से 1500 सौ घंटों की उड़ान का अभ्यास किया। इतने लंबे अनुभव की वजह से वो एक क़ाबिल फ़्लाइंग इंस्ट्रक्टर और एक़्ज़ामिनर भी हैं।

सारंग उड़ा रचा था इतिहास

दीपिका को वायुसेना के सारंग और सूर्य किरण के एयरोबैटिक प्रदर्शन हमेशा से आकर्षित करते थे। उन्हें ये मौक़ा मिला साल 2014 में जब वायुसेना ने पहली बार इसके लिए महिला पायलट के नाम मांगे। दीपिका ने बिना सोचे इसके लिए अपना नाम भेज दिया और फ़िर उसी साल जुलाई में वो इस दल में शामिल होने वाली पहली महिला पायलट बन गईं।
विंग कमांडर दीपिका की सफलता की ये कहानी देश की लाखों बेटियों के सपने को नया परवाज़ दे दिया है। एक नया आकाश दिखाया है। बेटियों को ना केवल सपने देखने बल्कि उन्हें पूरा करने का हौसला दिया है।