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धरती से

विश्व धरोहर रामलीला

मंच पर रामलीला चल रही हो और नीचे दर्शकों के हाथों में मंजीरे हो, किसी के हाथ में रामचरितमानस तो सोचिए कि कैसा अद्भुत् दृश्य होगा। देखने वाला हर कोई ख़ुद को रामलीला का ही हिस्सा समझने लगेगा। कुछ ऐसा ही होती है दो सदी से अधिक समय से चली आ रही इस ख़ास रामलीला में। ये है रामनगर की रामलीला।

रामनगर की रामलीला

हमारे देश में पारंपरिक रूप से दशहरे से पहले देश भर में अलग-अलग मंचों से रामलीला का मंचन होता आया है। लेकिन, इन रामलीलाओं में से सबसे अधिक प्रसिद्ध है रामनगर की रामलीला। उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक नगरी वाराणसी के रामनगर में होने वाली ये रामलीला दस दिन तक नहीं बल्कि पूरे एक महीने तक चलती है। तिथियों के आधार पर बात करें तो भादो में अनंत चतुर्दशी से लीला शुरू होकर आश्विन महीने की शुक्ल पूर्णिमा को खत्म होती है। और इसकी तैयारी तो सावन के शुरू होते ही होने लगती है।

200 साल पुराना इतिहास

यूं तो बाबा विश्वनाथ की नगरी में रामलीला की शुरुआत भगवान राम के अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसी दास और उनके मुंहबोले बड़े भाई और मित्र मेघा भगत ने की थी। वो काशी के तुलसी घाट पर की जाती थी । लेकिन राम नगर की रामलीला की शुरुआत तकरीबन साल 1783 में महाराज उदित नारायण सिंह के शासन काल में हुई। 200 साल से आयोजित हो रहे रामलीला के इस भव्य मंचन को साल 2008 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का भी दर्जा दिया है।

घटित शैली की रामलीला

वाराणसी में तीन तरह की रामलीलाएं होती हैं। झांकी लीला, तुलसी लीला और घटित लीला। रामनगर की रामलीला ये घटित शैली में प्रस्तुत की जाती है।
इस का मंचन अवधी भाषा में होता है। इसके साथ ही इसके लिए क़रीब 4 किलोमीटर के दायरे में एक दर्जन कच्चे और पक्के मंच बनाए जाते हैं जिनमें मुख्य रूप से अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पंचवटी, लंका और रामबाग को दर्शाया जाता है। इस रामलीला में रामचरितमानस की चौपाइयों के आधार पर कुल 27 किरदारों के लिए रामलीला में 12-14 बच्चे हिस्सा लेते हैं।

इस रामलीला में किसी भी प्रकार के साउंड सिस्टम या आधुनिक लाइटिंग सिस्टम का उपयोग नहीं होता है। कलाकार मंच से इतनी ऊंची आवाज़ में बोलते हैं कि सामने बैठे दर्शक सुन सकें। साथ ही यहां रोशनी के लिए पेट्रोमैक्स और मशाल का इस्तेमाल होता है।

कोरोना काल का पड़ा असर

कोरोना काल के दौरान दो साल तक ये रामलीला उस भव्यता के साथ नहीं हो सकी जैसे कि ये होती आ रही थी। लेकिन, इस साल 9 सितम्बर से ये रामलीला एक बार फिर उसी भव्यता के साथ शुरू हो चुकी हैं। रामलीला यहां पूरे महीने तक होगी और इसका समापन 9 अक्टूबर को होगा।

रामनगर की रामलीला काशी की विविधता और सांस्कृतिक विरासत का एक अमिट अंग है।