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Agriculture and Growth

युवा सोच, युवा सपने से बदली तस्वीर

बांदा ज़िला मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर बसा है अतर्रा नाम का क़स्बा। इसी क़स्बे में साकार हो रहा है जैविक ग्राम का सपना। खेत-खलिहान और अपनी मिट्टी से प्यार करने वाले एक इंजीनियर को कॉरपोरेट सेक्टर की नौकरी रास नहीं आई। वो गांव लौटा, लेकिन नई सोच और नए सपनों के साथ। और जब उसकी सोच और सपने आकार लेने लगे तो इलाक़े की तस्वीर बदलने लगी। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट उसी युवा की कहानी लेकर आया है जो इस जैविक ग्राम का जन्मदाता है।

रोहित नाम है उनका

उम्र महज़ 33 साल, लेकिन दिल में सपनों का विशाल आसमान। रोहित के इन्हीं सपनों की बदौलत अतर्रा की पहचान बदल चुकी है। आज अतर्रा एक जैविक ग्राम के नाम से जाना जा रहा है। प्राकृतिक खेती, वर्मी कंपोस्ट, गौ पालन, फसलों के देसी बीजों का संरक्षण और संवर्धन जैसे काम अब इलाक़े का नाम बढ़ा रहे हैं।
बांदा के अतर्रा के रहने वाले रोहित श्रीवास्तव ने साल 2010 में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। एक कंपनी में अच्छी ख़ासी नौकरी लग गई। पैसे तो मिल रहे थे लेकिन सुकून नहीं मिल रहा था। नौकरी छोड़ कर उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। इसी दौरान खेती के बारे में ज़्यादा पढ़ने का मौक़ा मिला। विज्ञान के इस छात्र का जब खेती से साक्षात्कार हुआ तो चीज़ें बदलने लगीं। घर में अपने खेत-खलिहान थे लेकिन पढ़ाई की वजह से रोहित कभी उसके बहुत क़रीब नहीं हो पाए थे। गांव-घर और मिट्टी से प्यार तो था लेकिन कभी ये नहीं सोचा था कि उसके लिए कुछ काम भी करेंगे। लेकिन खेती पर की जा रही पढ़ाई उन्हें नई दिशा दिखा रही थी। अचानक उन्होंने फ़ैसला किया कि गांव जाकर काम करना है। साल 2014 के अंत में वो अतर्रा लौट आए और खेत-खलिहान को नज़दीक से समझने लगे।

प्राकृतिक खेती का रास्ता गौपालन से

रोहित को खेती में रासायनिक खाद और दवाओं का इस्तेमाल बहुत परेशान कर रहा था। उन्हें लगता था कि गांव में लगातार बढ़ते कैंसर के मरीज़ों के पीछे की वजह यही रसायन हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने प्राकृतिक खेती करने का संकल्प लिया। बिल्कुल ऑर्गेनिक, जिसमें ना तो रासायनिक खाद डाली जाए ना दवाएं।

लेकिन प्राकृतिक खेती भी आसान नहीं थी। खाद के लिए बड़े पैमाने पर गोबर की ज़रूरत थी। दवा के लिए नीम और गोमूत्र की आवश्यकता थी। रोहित समझ चुके थे कि प्राकृतिक खेती के लिए गौपालन ज़रूरी है। 2014 में रोहित ने दो गायों से अपनी गौशाला की शुरुआत की। आज उनकी संख्या 50 हो चुकी हैं। गिर, साहिवाल के साथ-साथ हरियाणा और बुंदेलखंड की कई देसी प्रजातियों की गायें इनमें शामिल हैं। गौ संवर्धन के लिए गिर और साहिवाल के सांड भी हैं। रोहित की गौशाला में 14 भैंस भी हैं।
इलाक़े में बढ़ रहे आवारा गोवंशों की परेशानी से निपटने के लिए भी रोहित ने क़दम उठाए। उन्होंने कई आवारा पशुओं के लिए शेल्टर बनाए ताकि वो खेत-खलिहान को बर्बाद ना करें।

गौशाला से बढ़ा कारोबार

एक तरफ गौशाला से प्राकृतिक खेती के लिए खाद बनाने के लिए बड़े पैमाने पर गोबर और गोमूत्र मिलने लगा तो वहीं गाय और भैंस के दूध और देसी घी की बिक्री आमदनी का बढ़िया ज़रिया बन गई। अपने जैविक ग्राम में रोहित ने वर्मी कंपोस्ट, मटका खाद, जीवामृत और नीमास्त्र जैसे खाद और कीटनाशक भी तैयार कर लिये। अपने खेतों में इस्तेमाल के साथ-साथ इनकी भी बिक्री से आय में इज़ाफ़ा होने लगा।

देसी बीजों का संरक्षण

रोहित ने एक तरफ़ देसी प्रजातियों की गायों का पालन किया तो दूसरी तरफ़ धान, गेहूं, दाल और सब्ज़ियों की देसी किस्मों का संरक्षण भी किया। महाचिन्नावर, मुस्कान, गोविन्दभोग, काला चावल जैसे धान, बंशी, सोना मोती, काला गेहूं, लोकवन जैसी गेहूं की किस्मों के साथ-साथ अरहर दाल, देसी टमाटर, देसी बैंगन, देसी लौकी और देसी सेम जैसी सब्ज़ियों के बीजों का भंडार रोहित के पास है।

खेती को बनाया बहुआयामी

जैसे-जैसे रोहित का काम बढ़ता जा रहा था, उनका अनुभव भी बढ़ रहा था। इन्हीं अनुभवों ने उनमें आत्मविश्वास भरा। अब रोहित नवाचार में जुट गए। उन्होंने धान-गेहूं और सब्ज़ियों के साथ दूसरी फसलों की खेती भी शुरू की। हल्दी, धनिया, मिर्च, सौंफ और मेथी जैसे मसालों, आम, अमरूद, बेर, शहतूत, अनार, जामुन जैसे फलदार पेड़, बांस, सागवान, शीशम, महुआ, कटहल जैसे इमारती लकड़ी देने वाले पेड़ लगाए। इतना ही नहीं, लेमनग्रास, एलोविरा, तुलसी, अम्बाडी और सहजन जैसे औषधीय पेड़-पौधे भी बड़े पैमाने पर लगाए गए हैं।

रोहित ने इसके साथ ही फूलों की खेती भी शुरू कर दी। गुलाब, अड़हुल, गेंदा, कनेर और पारिजात की खेती बहुत लाभदायक साबित हो रही है। यहां तक की उन्होंने पशुओं के लिए हरे चारे का बंदोबस्त भी खेत से ही कर लिया।

जल संरक्षण और मछली पालन

अपने काम को आगे बढ़ाते हुए रोहित ने जल और वृक्ष संरक्षण को भी अपने अभियान में शामिल कर लिया। खेत में एक तालाब का निर्माण कराया। इसमें मछली और बत्तख पालन किया जा रहा है। खेती में ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर और रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसी तक़नीक से पानी बचाया जा रहा है। बिजली की खपत कम करने के लिए सोलर पंप लगाए गए हैं।

रोज़गार सृजन और जागरूकता अभियान

रोहित ने खेती से रोज़गार सृजन का भी रास्ता बनाया है। उन्होंने सब्ज़ियों और फलों की पौध के लिए अच्छी नर्सरी तैयार की है। स्थानीय किसान रोहित की नर्सरी से इन पौध की ख़रीद कर रहे हैं। वहीं रोहित के जैविक ग्राम में कई तरह के उत्पादों का निर्माण हो रहा है। गोबर से गमले, धूपबत्ती, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती और मूर्तियां बनाईं जा रही हैं। बांस से सोफ़े-कुर्सियां, टेबल, ट्रे जैसी चीज़ें बनाकर बेची जा रही हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है। रोहित इसके साथ-साथ जागरूकता अभियान भी चलाते हैं। स्थानीय किसानों को अपने जैविक ग्राम दिखा कर वो उन्हें भी ऐसा ही कुछ करने की प्रेरणा देते हैं। साल 2021 में उन्होंने जैविक ग्राम के गौ आधारित उत्पादों के लिए जैविक ग्राम किसान हाट आरंभ किया है। केवल 2 फसलों से शुरू हुआ रोहित का सफर इन 8 सालों में 28 फसलों तक पहुंच चुका है। खेती, पर्यावरण और रोज़गार को लेकर उनका काम किसी क्रांति से कम नहीं है।

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